उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी | एक कविता बिहार से

 उसे भी देख, जो भीतर भरा अंगार है साथी।

सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को,
किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।
उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,
दबी तेरे लहू में रौशनी की धार है साथी।

पड़ी थी नींव तेरी चाँद-सूरज के उजाले पर,
तपस्या पर, लहू पर, आग पर, तलवार-भाले पर।
डरे तू नाउमींदी से, कभी यह हो नहीं सकता।
कि तुझ में ज्योति का अक्षय भरा भण्डार है साथी।

बवण्डर चीखता लौटा, फिरा तूफान जाता है,
डराने के लिए तुझको नया भूडोल आता है;
नया मैदान है राही, गरजना है नये बल से;
उठा, इस बार वह जो आखिरी हुंकार है साथी।

विनय की रागिनी में बीन के ये तार बजते हैं,
रुदन बजता, सजग हो क्षोभ-हाहाकार बजते हैं।
बजा, इस बार दीपक-राग कोई आखिरी सुर में;
छिपा इस बीन में ही आगवाला तार है साथी।

गरजते शेर आये, सामने फिर भेड़िये आये,
नखों को तेज, दाँतों को बहुत तीखा किये आये।
मगर, परवाह क्या? हो जा खड़ा तू तानकर उसको,
छिपी जो हड्डियों में आग-सी तलवार है साथी।

शिखर पर तू, न तेरी राह बाकी दाहिने-बायें,
खड़ी आगे दरी यह मौत-सी विकराल मुँह बाये,
कदम पीछे हटाया तो अभी ईमान जाता है,
उछल जा, कूद जा, पल में दरी यह पार है साथी।

न रुकना है तुझे झण्डा उड़ा केवल पहाड़ों पर,
विजय पानी है तुझको चाँद-सूरज पर, सितारों पर।
वधू रहती जहाँ नरवीर की, तलवारवालों की,
जमीं वह इस जरा-से आसमाँ के पार है साथी।

भुजाओं पर मही का भार फूलों-सा उठाये जा,
कँपाये जा गगन को, इन्द्र का आसन हिलाये जा।
जहाँ में एक ही है रौशनी, वह नाम की तेरे,
जमीं को एक तेरी आग का आधार है साथी।

उपरोक्त पंक्तियाँ कालजयी लेखक, कवि एवं निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर की रचना “साथी” की हैं। आइये अब उनके जीवन से रुबरु होते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार के बेगुसराय जिले में हुआ था।  आजादी से पहले  उन्हें  विद्रोही कवि माना जाता था और आज़ादी के बाद उन्हें राष्ट्रकवि का दर्ज़ा मिला। उनकी कविताओं की विविधता अद्वितीय हैं। एक और तो वो अपनी कविताओं में विद्रोह और क्रांति की गाथा कहते हैं तो दूसरी ओर उनकी कविताओं की कोमल श्रृंगारिक भावनाएं सराबोर कर देती हैं। कुरुक्षेत्र और उर्वशी इस बात का  उदहारण हैं। कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान प्राप्त है और उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जा चुका है। कुरुक्षेत्र के लिए उन्हें काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार के द्वारा भी सम्मान किया जा चुका हैं। दिनकरजी को 1959 में साहित्य अकादमी एवं पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

दिनकर जी की पहली रचना “रेणुका” १९३५ में प्रकशित हुई जिसने  हिन्दी जगत को एक बिल्कुल नई शैली, नई शक्ति और नई भाषा दी। इसी के साथ उनके कवि जीवन की शुरुआत हुई । दिनकर टैगोर, इकबाल,कीट्स और मिल्टन से काफी प्रभावित थे। उन्होंने गरीबी को करीब से देखा था और गरीबी के प्रभाव को अपनी कविताओं में भी उकेरा था। उर्वशी को छोड़ दिया जाये तो उनका ज्यादातर काव्य वीर रस से जुड़ा था। दिनकरजी सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी कविताये लिखते थे, उन कविताओं में उन्होंने जिनमे उन्होंने सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को मुख्य रूप से दर्शाया था। दिनकरजी की रचना रश्मिरथी, हिन्दू महाकाव्य महाभारत को  सबसे बेहतरीन हिंदी संस्करण माना गया है।

उनकी रचनाओ के अलावा एक और निशानी दिनकरजी का दालान आज भी बेगुसराय जिले में है जो समय की मार से जीर्ण हो चुका है। पर उनकी रचनायें आने वाली पीढ़ियों में भी जीवित रहेंगी।हम इस कालजयी लेखक को नमन करते हैं और बिहार की धरती को भी जिसने ऐसे लाल को जन्म दिया।

Photo by : Saurav Anuraj

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― Sarah J. Maas, Crown of Midnight