बिहारी हो_? हां।
क्या जानते हो बिहार के बारे में ……
पहले सवाल का जवाब तो जन्म के साथ ही मिल जाता है,पर दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा मुश्किल है। बिहार एक राज्य है और हमारा इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। अमूमन बिहारी लोग आइडेंटी क्राइसिस जैसी स्थिति में इतिहास के पन्ने पलटते हैं,पर हमारे वर्तमान, भूगोल, संस्कृति, इत्यादि के बारे में हम क्यों निःशब्द हो जाते हैं ?
अब मैं बिहार का वर्तमान थोड़ा बेहतर तरीके से समझने लगा हूं। परदेसी, विदेसिया, इत्यादि जैसे कई अल्फाज के जकड़न को तोड़ने के बाद घरवापसी सुखद एहसास है। बचपन बिहार में बिताने के बाद बाहर दुनिया देखकर उम्र के इस पड़ाव पर बिहार आना न सिर्फ अलग पर अजीब भी था। मन में यह डर था कि फिर से बिहार छोड़ कर जाना पड़ा तो खुद को कैसे संभाल पाएंगे, पर बिहार ने अब निराश नहीं किया है। बिहार में मूलभूत सुविधाएं गांव गांव पहुंच गई हैं। और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है कि सुविधाएं गांव तक पहुंची हैं। गांव भी अब शहरों से नजदीक हुए हैं। लिहाजा अब शहर और गांव के बीच की खाई कम होने से राज्य से पलायन घटने की संभावनाएं बेहतर हुई हैं। दसवीं तक की शिक्षा और मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं राज्य का हर जिला मुख्यालय उपलब्ध कराने में सफल है। बारहवीं तक की पढ़ाई राजधानी संभाल लेती है। गड़बड़ उसके बाद शुरू होती है और फिर गाड़ी पटरी से उतर जाती है। उमर के इस पड़ाव पर घर छोड़ने के बाद वापसी की कोई गारंटी नहीं रहती।
शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और नून-रोटी जैसे कई अहम मुद्दे हैं जो अब भी बिहार के चुनावी वादों में जगह नहीं बना पाए हैं। महंगे स्कूलों में अपना खून जलाकर बच्चों को पढ़ाने वाले परिवार सिर्फ़ सरकारी स्कूलों से दूर हुए हैं, सरकारी नौकरी से नहीं। महंगे अस्पतालों में इलाज कराने वाला वर्ग हो या सरकारी अस्पतालों में धक्के खाता मजदूर वर्ग, सब पलायन पर मजबूर हैं। सरकारी और प्राइवेट दोनों सुविधाओं के लिए राज्य से बाहर क्यों जाना पड़ रहा है? क्या कम संसाधनों में गुजारा नहीं हो सकता? चूक इस बात में हुई है कि हमारी इच्छा शक्ति अचानक से इतनी कमजोर हो गई है कि हमने गिव अप कर दिया है। सिनेमा भी इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना हमारे हालात हैं।
ग्रेजुएशन के दौरान कैमूर, जहानाबाद घूमने का मौका मिला। जिंदगी में कई दफे सारण और गया जिला भी आने जाना लगा रहा। सिवान मुजफ्फरपुर और पूर्वी चंपारण भी पिछले कुछ महीनों में देखने समझने का अवसर मिला है। कोसी और मिथिला क्षेत्र ग्रेजुएशन के दोस्तों की वजह से कुछ हद तक समझ पाया हूं। लोक कला और संस्कृति में बिहार का हर क्षेत्र अपनी अलग पहचान रखता है, यह बात भी अपनी जगह है, लिहाजा बिहार अब भी बहुत सारा अछूता रह गया है। कई सालों से दक्षिण बिहार की सूखी जमीन से उत्तर बिहार की बारहों मास डूबी जमीन के बीच झूलता विकास नो मैन्स लैंड में सुरती खाते हुए सनबाथ ले रहा था, पर अब बिहार करवट बदल रहा है। पहाड़ों पर भी नेटवर्क है और दियारा में भी फुल टॉवर है।
मैं पिछले कुछ महीनों से पटना में रह रहा हूं, मूल रूप से सारण जिले से आता हूं। बिहारी भाषा पर एक चीज कहूंगा कि बिहारी भाषा नहीं भाषाओं का समूह है, जो संख्या में पांच है। पटना की अच्छी बात है कि पांच भाषाएं और चार बड़ी नदियों का संगम यहां होता है। लिहाजा बिहार को समझने के लिए पटना बेहतर और आसान तरीका है। हालांकि देश के अन्य हिस्सों में रहते हुए बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के रंग रूप समझने के मौके मिले थे, पर दूसरे राज्यों के मेल मिलाप से उनमें भटकाव थे। पटना में हर चीज रॉ है। मगही, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका और वज्जिका बोलने वाले लोग अपनी ज़बान में ओरिजिनल रहते हैं। इन सारी भाषाओ को मेरे लिए बोलना मुश्किल है,पर समझने में कोई परेशानी नहीं आती है। इस वजह से बिहार के लोगों के लिए भाषा बैरियर नहीं हैं।
दूसरी बात बिहार में नदियों से जुड़ी हुई है, नदियां हमारे श्रद्धा का केंद्र हैं। छठ महापर्व में नदियों का महत्व है। नदियां हमारे विकास में बाधा हैं, यह बात सोचना भी गलत है। नदी के होने से ही सभ्यताएं हैं। कई सत्ताओं ने बिहार को शासन का केंद्र बनाया,उसका प्रमुख कारण नदियों का होना ही था।
तो क्या नदियों और अकाल का हवाला देकर उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार समय के अंत तक दुनिया के हर कोने में भटकते रहेंगे। मेहनत हम दूसरे राज्य या देश की बजाय अपने राज्य में भी कर सकते हैं। यहां पर दो समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की कमी से युवाओं में स्किल की कमी होना पहला और व्यवसायिक गतिविधियां का बिहार में ना होना दूसरा सबसे बड़ा ब्लंडर है। बाकी सारी चीजें इन्ही दो मुद्दों का हल ढूंढ कर सॉल्व किए जा सकते हैं। पर दुख की बात यह है कि इन दो मुद्दों को हम कभी जरूरी सुधारों की सूची में नहीं डाल पाए।
उम्र के उस पड़ाव पर शिक्षा कारणों से मेरे बिहार छोड़ कर जाने की वजह अब सुलझ गई है, जिससे एक उम्मीद जगी है कि बिहार को समय और निरंतर प्रयासों से ऑन ट्रैक लाना आसान है। उम्मीद है कि आने वाले सालों में पटना अचीवमेंट के तौर पर मेट्रो, पुलों का नेटवर्क, मरीन ड्राइव, सिविल सेवा परीक्षा से इतर अपनी पहचान बिजनेस हब, आईटी पार्क, गुणवत्ता पूर्ण उच्च शिक्षण संस्थान, टाइमली यूजी-पीजी सेशन इत्यादि देगा। मधुर मैथिली द्वारा निर्मित वेब सीरीज “नून रोटी” में एक डायलॉग है_ “मिथिला के मिथिला में ही चाही रोजगार”। निश्चित रूप से कोविड के भयानक दृश्य हम बिहार वासी कभी नहीं भूलेंगे। हम में से कई अपनी मजबूरियों की वजह से दूसरे राज्यों में वापस गए जरूर हैं, पर यह बात पक्की है कि मौका मिलते ही वह बिहार की जमीन पर तमाम सुख सुविधाएं त्याग कर बेझिझक लौट आएंगे। लौटेंगे वह दिन जो इतिहास में रहे हैं,बिहार उस रास्ते पर चल रहा है, जरा देर हो गई है,पर बिहार जाग गया है।