HomeBiharसुकून की तलाश | एक कविता बिहार से Satyam Kumar Jha Bihar, एक कविता बिहार से शाम्भवी सिंह का जन्म बिहार के पटना जिले में हुआ है । मूलतः ये नवादा जिले की है लेकिन उनकी प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई देवघर में हुई। इन्होंने एनएसएचएम कोलकाता से पत्रकारिता में बीए किया । तत्पश्चात महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में एम.ए की। इन्होंने एनडीटीवी पटना से अपना कैरियर शुरू किया । फिर टाइम्स ऑफ इंडिया, टेलीग्राफ और हिंदुस्तान जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया। फ़िलवक्त अभी पटना में रेड एफएम में एग्जेक्युटिव प्रॉड्यूसर की भूमिका में कार्यरत है। इनसब के अलावा शाम्भवी सिंह स्वभाव से घुमक्कड़ है। ट्रेकिंग करना इन्हें बहुत पसंद है। इसी साल 4 नये जगह घूम चुकी है। उनके अनुसार नये जगह पर जाना खुद को खुद में ही तलाशने जैसा है। प्रकृति बहुत कुछ कहती है अगर हम ठहर कर उसकी बात सुने तो कई अनसुलझे गिरह खुल सकती है। ये कविता भी कुछ इसी तरह लिखी गयी थी। व्यास नदी के किनारे सकून को ढूढ़ते हुए जो भी शब्द आये वो कविता बन गयी। इनकी कविताओं में प्रकृति अनायास ही आ जाता है। जैसे एक जगह लिखते हुए कहती है कि जब सुबह सूरज मुस्कुराते हुए आसमां को इश्क़ से लाल करता है, चाँद बादलों के पीछे खुद को समेटे रात का इंतजार करता है। यही इनकी खासियत है बिम्बों के इस्तेमाल में जहां ये इसी दुनिया में होकर कुछ मोहक बिम्ब बुनती है वही सीधी बातों को प्रेम के साथ रख देती है जो इनकी कविता को दूसरी कविताओं से इतर करता है। तो प्रस्तुत है पटनबीट्स कि तरफ से “एक कविता बिहार से” में शाम्भवी सिंह की एक कविता जिसका शीर्षक है, सुकून की तलाश। सुकून की तलाश ये जो तुम मेरी धड़कनों तेज बहती हो कभी कभी तुम्हे ऐसे बेधड़क बेहता देख सुकून मिलता है जब मेरे पैरों से टकरा कर बहती हो ऐसा लगता है मेरे सारे दर्द अपने में समेट कहीं ले जाती हो मुझसे बहुत दूर बहुत सुकून देता है. मेरे आँखों के आँसुओं को समेट कर तुम जो थोड़ी नमकीन होती हो थोड़ा जो तुम्हारा वजन बढ़ता है बहुत सुकून देता है. टक मार कर तुम्हें घण्टों देखना कभी गुदगुदा कर हँस देना, कभी फ़फ़क कर रोना और तुम्हारा ये न पूछना की क्यों ऐसे देखती हो बहुत सुकून देता है क्या कोई उस पार भी मेरा इंतज़ार करता है? उसके पैरों से भी टकरा कर कभी मेरा एहसास दिलाती हो क्या? याद हूँ मैं उसे या किसी और के साथ तुम्हारे साथ खेलता है सुकून में है या तुममे सुकून ढूढ़ता है ? तुम्हारा यूँ मेरे सवालों पर इतरा कर निकल जाना बहुत सुकून देता है. Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook and Twitter. Quote of the day: “Live and act within the limit of your knowledge and keep expanding it to the limit of your life.” ― Ayn Rand, Atlas Shrugged