Home#IamBrandBiharमिलिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार पाने वाला चौकीदार कवि उमेश पासवान से सीटू तिवारी #IamBrandBihar, Art, Bihar पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए Share Pin “हम नवटोली गांव के चौकीदार हैं. गांव के माहौल में जो देखते हैं, वो लिख देते हैं. कविता मेरे लिए टॉनिक की तरह है. “ बातचीत के दौरान 34 साल के उमेश पासवान ये बात कई बार दोहराते हैं. उमेश पासवान को उनके कविता संग्रह ‘वर्णित रस’ के लिए मैथिली भाषा में साल 2018 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है. पेशे से चौकीदार, लेकिन दिल से कवि उमेश पासवान कहते हैं, “पुरस्कार मिला इसकी ख़ुशी है, लेकिन लिखता आत्म-संतुष्टि के लिए ही हूं.” बिहार के मधुबनी ज़िले के लौकही थाने में बीते नौ साल से चौकीदार उमेश पासवान की कविता का मुख्य स्वर ग्रामीण जीवन है. Share Pin Share Pin इउमेश पासवान का कविता संग्रहकहां से हुई शुरुआत? उमेश बताते हैं, “जब नौवीं क्लास में था तब मधुबनी के कुलदीप यादव की लॉज में रहते वक़्त एक सीनियर सुभाष चंद्रा से मुलाक़ात हो गई. वो कविता लिखते थे तो हमने भी टूटी-फूटी कविता लिखनी शुरू कर दी.” लेकिन इस ज्वार ने ज़ोर कब पकड़ा? इस सवाल पर उमेश का जवाब था, “बाद में मधुबनी के जेटी बाबू के यहां चलने वाली स्वचालित गोष्ठी में जाकर कविता पाठ किया. कविता तो बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन प्रोत्साहन मिला और कविता लेखन ने ज़ोर पकड़ा.” 22 भाषाओं में मिलने वाला साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 35 साल से कम उम्र के साहित्यकार को मिलता है. विद्यानाथ झा मैथिली भाषा की कैटेगरी में अवॉर्ड तय करने वाली तीन सदस्यीय ज्यूरी मेंबर में से एक हैं. वह कहते हैं, “उमेश की भाषा में एक नैसर्गिक प्रवाह है जो आपको अपने साथ लिए चलता है. उनकी कविताओं में बहुत विस्तार है. उमेश की कविताएं सामाजिक न्याय की बात करती हैं तो गांव के सुख-दुख से लेकर मैथिल समाज के तमाम सरोकारों को हमारे सामने रखती हैं. उमेश को अवॉर्ड मिलना दो वजहों से ख़ास है, पहला तो उनके पेशे के चलते और दूसरा उमेश को मिला पुरस्कार ये धारणा भी तोड़ता है कि मैथिली पर सिर्फ़ ब्राह्मणों या कायस्थों का अधिकार है.” दरअसल, उमेश के जीवन के उतार-चढ़ाव ने उनकी कविता के लिए ज़मीन तैयार की. Share Pin उमेश पासवान अपने परिवार के साथमां को कविता पसंद नहीं उमेश ने जब होश संभाला तो पिता खखन पासवान और मां अमेरीका देवी को खेतों में मज़दूरी करते देखा. बाद में पिता खखन पासवान को लौकही थाने में चौकीदार की नौकरी मिली जो उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर उमेश को मिल गई. दिलचस्प है कि 65 वर्षीय अमेरीका देवी को बेटे उमेश का यूं कविताई में उलझे रहना पसंद नहीं था. वो बताती हैं, “बहुत बचपने से ही लिखता था. हमने बहुत समझाया पढ़ाई पर ध्यान दो फबरा (कविता) लिखने से क्या होगा, लेकिन ये ध्यान नहीं देता था जब टाइम मिले फबरा लिखता था और हमें सुनाता था.” काले अक्षरों से अनजान अमेरीका को जब उमेश ने साहित्य अकादमी अवॉर्ड मिलने की ख़बर सुनाई तो उनका पहला सवाल था, “इसके लिए पैसे देने होंगे या फिर मिलेगा?” उमेश से बात करने पर दूर-दराज़ के इलाकों की एक और समस्या का पता चलता है. रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में उलझे इन इलाकों के लोगों का कविता, कथा, उससे जुड़े पुरस्कारों से रिश्ता लगभग न के बराबर है. Share Pin उमेश पासवान कहानियों का संग्रह प्रकाशित कराना चाहते हैंकई कविता संग्रह प्रकाशित जैसा कि उमेश बताते भी हैं, “साहित्य अकादमी यहां कोई नहीं समझता. हम मधुबनी, दिल्ली, पटना सब जगह अपनी कविता सुनाते हैं, लेकिन हमारे गांव में कोई नहीं सुनता. जब किसी ने नहीं सुना तो हमने कांतिपुर एफएम और दूसरे रेडियो स्टेशनों पर कविता भेजनी शुरू की ताकि कम से कम रेडियो के श्रोता तो मेरी कविता सुनें.” कांतिपुर एफ़एम नेपाल से प्रसारित होने वाला रेडियो स्टेशन है. दो बच्चों के पिता उमेश के अब तक तीन कविता संग्रह ‘वर्णित रस’, ‘चंद्र मणि’, ‘उपराग’ आ चुके हैं. Share Pin Share Pin फ़िलहाल वो गांव के जीवन और उनके थाने में आने वाली शिकायतों के इर्द-गिर्द बुनी कहानियों का एक संग्रह प्रकाशित कराने की तैयारी में हैं. विज्ञान से स्नातक उमेश अपने गांव में एक निःशुल्क शिक्षा केंद्र भी चलाते हैं. साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार के रूप में उन्हें 50 हजार की राशि पुरस्कार स्वरूप दी जाएगी. उमेश ने इस पुरस्कार राशि को शहीद सैनिकों के बच्चों की मदद के लिए सरकारी कोष में जमा करने का फ़ैसला लिया है. तकनीक से दूर रहने वाले उमेश का फ़ेसबुक पेज हैंडल करने वाली उनकी पत्नी प्रियंका कहती हैं, “हमें हमेशा लगता था कि ये एक दिन कोई बड़ा काम करेंगे.” This article was published on BBC Hindi. Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook and Twitter. Quote of the day: “Life did not stop, and one had to live.” ― Leo Tolstoy, War and Peace Share Tweet Share Pin Comments comments