राइडर राकेश, वो बिहारी जो साइकिल पे निकला है लिंग-भेद मिटाने

 

गीता, तिनम्‍मा, शांति, हसीना हुसैन और राजलक्ष्‍मी. कर्नाटक के इन तेज़ाब पीडितों में से हसीना हुसैना (हरे लिबास में) के अलावा बाकी सबको उनके पतियों ने तेज़ाब में धोया. तिनम्‍मा की गोद में तीन महीने का बच्‍चा है, जिसका बाप वही पति है जिसने उन पर तेज़ाब छिड़का था.

साइकिल चलाने से क्या क्या फायदे हो सकते हैं आपके हिसाब से? आप कहेंगे वजन कम होता है, मांसपेशियाँ मजबूत होती है, इंधन बचता है वगैरह वगैरह। पर यहाँ मामला कुछ और है। ये जनाब रोजाना ६०-७० किलोमीटर साइकिल चलाते हैं और पिछले तीन सालों से लगातार चला रहे हैं। पर अपनी खातिर नहीं, अपनी सेहत की खातिर नहीं बल्कि दुनिया बदलने की खातिर। ये उस सोच को बदलने में लगे हैं हम सभी जो एक महिला और एक पुरुष के साथ अलग व्यवहार करने पर मजबूर करती है। आइये इनसे परिचय कराती हूँ।

ये हैं राकेश कुमार सिंह उर्फ़ “राइडर राकेश”। हाल ही में राकेश पटनाबीट्स के कार्यालय में पधारे थे और लिंग भेद पर अपने सुलझे हुए विचार हमसे साझा किये थे।


यहाँ देखिये राकेश का वह फेसबुक लाइव वीडियो


राइडर राकेश मूल रूप से बिहार के शिवहर जिले के तरियानी छपरा के हैं। हाल ही में “फेमिना” के जून २०१७ संस्करण में इनपर एक आलेख छपा है। इन्होने अपनी पहली किताब “बम संकर टन गनेस” लिखने के बाद अपनी दूसरी किताब “बियॉन्ड नागाज” (Beyond Nagas) पर काम करना शुरू किया जिसके लिए वो इलाहाबाद गए थे। इसी दौरान तीन महीने की अवधि में वो २६-२७ एसिड अटैक विक्टिम्स से मिले जिसने उन्हें अपनी इस यात्रा के लिए प्रेरित किया। राकेश ऐसी घटनाओं की जड़ तक पहुचना चाहते थे जो किसी एक लिंग विशेष के साथ होती हैं  राकेश सिर्फ एक अभियान पर नहीं निकले थे बल्कि कई सवालों के जवाब ढूंढने निकले थे जो उन्हें अपनी यात्रा के दौरान मिलते गए। देश के २९ में से ११ राज्यों को नापने के बाद उन्हें अपनी साइकिल यात्रा को विराम देना पड़ा क्यूंकि मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में कुएं और तालाबों का पानी पीने के बाद उनको लीवर सम्बन्धी समस्याएं हो गयी थी। २३ जुलाई २०१७ के आसपास वो अपनी यात्रा को पुनः आरम्भ कर रहे हैं और संभवतः दिसम्बर २०१८ में उनकी यात्रा का समापन हो जाएगा।

आइये आपको राइडर राकेश की साइकिल के बारे में बताएं उनकी साइकिल में साढ़े पांच फीट का एक झन्डा लगा है और और आगे एक तख्ती लगी है जिसपर लिखा है “राइड फॉर जेंडर फ्रीडम” (RIDE FOR GENDER FREEDOM)। उनकी ज़रूरत का सारा सामान उनकी साइकिल पर ही होता है। अपनी साइकिल से वो तकरीबन १८००० किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। लोग उनकी साइकिल देख कर उनसे पूछते हैं की वो क्या कर रहे हैं और इस तरह उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलता है। वो स्कूलों में जाकर भी अपनी बात रखते हैं। कई बार वो गांवों में जाकर लोगों से ऐसी शादियों का बहिष्कार करने को कहते हैं जिनमे दहेज़ लिया और दिया जा रहा हो। और कई बार उनके कहने पर लोग ऐसी शादियों में नहीं भी जाते हैं।

राकेश से अगर आप बात करेंगे तो सोचने पर मजबूर हो जायेंगे की हमारे आसपास व्यापित नियमो के पीछे कोइ रीति रिवाज नहीं कोई परंपरा नहीं बस हमारी सोच और वो परवरिश है जो हम अपने बच्चों को शुरुआत से देते हैं। अक्सर आपने किसी पुरुष को सड़क किनारे हल्का होते देखा है, कभी किसी महिला को ऐसा करते देखा है? कामकाजी महिलाओं को जिन्हें सारा दिन घर से बाहर रहना पड़ता है उन्हें अपनी इस जैविक जरुरत के लिए कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों हैं? इसका जवाब राकेश जी के पास है। उन्होंने एक वाकया बताया की एक शादी में उन्होंने देखा की शादी के मंडप के बगल में खाना खाती एक महिला को उसके डेढ़ वर्षीय बेटे ने कहा की उसे सुसु करना है। उसकी माँ ने तुरंत उसकी पैंट एक इंच नीचे कर दी। राकेश कहते हैं वहीँ अगर उनकी बेटी होती तो उसे थोड़ी देर रुकने को कहा जाता। उसकी माँ खाना खतम कर के उसे दोनों हाथों से उठा कर टॉयलेट या कमसे कम किसी मोड़ी पर लेकर जाती। इस तरह वो डेढ़ साल का बच्चा सीखता है की उसे लड़कियों की तरह टॉयलेट खोजने की जरुरत नहीं है वो कहीं भी हलके हो सकते हैं और इस तरह हमारी परवरिश हमारे बच्चोँ का व्यवहार तय करती है।

राकेश को अपनी आगे यात्रा के लिए फण्ड की जरुरत है। अगर आप चाहे तो उनकी मदद कर सकते हैं। राकेश कहते हैं लोग उन्हें दिन का एक रुपया दे सकते हैं और घर के कबाड़ को बेच कर आये हुए पैसे भी। सहयोग उनतक कैसे पहुचाना है उसके लिए आप [email protected]।com पर संपर्क कर सकते हैं।

तस्वीर साभार : राकेश के फेसबुक वाल 

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Quote of the day:“Life is a blank canvas, and you need to throw all the paint on it you can.” 
― Danny Kaye