राजेश कमल का जन्म सहरसा में हुआ और फ़िलहाल पटना में रहते हैं। समाज से काफ़ी जुड़े होने के कारण उनकी कविताओं में प्रेम, समाज, देश, राजनीति के मानवीय भावनाओं का समावेश दिखता है। समकालीन परिस्थितियों को राजेश शब्दों में घोल कर अपनी कविताओं में प्रस्तुत करते हैं।
प्रस्तुत कविता में राजेश ज़िन्दगी की आपाधापी में छोटे-छोटे लम्हों को न जी पाने की कसक की बात कर रहे हैं।
आज ‘एक कविता बिहार से’ में प्रस्तुत है राजेश कमल की कविता ‘कभी कभी सोचता हूँ’:
कभी कभी सोचता हूँ
कितना अच्छा होता अगर
यारों के साथ
करता रहता गप्प
और बीत जाता यह जीवन
कितना अच्छा होता अगर
माशूक़ की आँखों में
पड़ा रहता बेसुध
और बीत जाता यह जीवन
लेकिन
वक़्त ने कुछ और ही तय कर रख्खा था
हमारे जीने मरने का समय
मुंह अँधेरे से रात को
बिछौने पर गिर जाने तक का समय
और कभी कभी तो उसके बाद भी
कि अब याद रहता है सिर्फ काम
काम याने जिसके मिलते हैं दाम
दाम याने हरे हरे नोट
कि वर्षों हो गए उस पुराने शहर को गए जिसने दिया पहला प्रेम कि वर्षों हो गए उस पुराने शहर को गए जिसने दी यारों की एक फ़ौज और अब तो भूल गया माँ को भी जिसने दी यह काया
शर्म आती है ऐसी जिंदगी पर
कि कुत्ते भी पाल ही लेते है पेट अपना
और हमने दुनिया को बेहतर बनाने के लिए
ऐसा कुछ किया भी नहीं
कभी कभी सोचता हूँ कितना अच्छा होता अगर दुनियादारी न सीखी होती अनाड़ी रहता और बीत जाता यह जीवन
Photo Credit: Satyam Vr
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Quote of the day: “You only live once, but if you do it right, once is enough.”
― Mae West
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