HomeBiharमुज़फ़्फ़रपुर के काले अध्याय में उम्मीद की किरण बने ये लोग Sidharth Shankar Bihar अहमद फ़राज़ का एक बड़ा ही माकूल शेर है, “शिकवा-ए-ज़ुल्मते शब से तो कहीं बेहतर था अपने हिस्से की कोई शम्मा जलाते जाते” जून की शुरुआत में बिहार को एक ऐसी अँधेरी रात ने अपने आगोश में लिया जिसकी वजह कितने ही घरों के दीपक बुझ गए। चमकी बुखार या एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) का दंश मुज़फ़्फ़रपुर और उसके आस पास के ज़िलों को पिछले 6 सालों से लगभग हर साल ही झेलना पड़ता है। 2013 से 2015 तक के आंकड़ों को देखें तो हर साल सैकड़ों मासूमों की सूनी आँखें मौत का भयावह चेहरा और सरकार की संवेदनहीनता देखते हुए हमेशा के लिए बंद हो जाती थी और उनकी मौत की ख़बरें महज अख़बारों पर छपी इंक में दब के रह जाती थी। इस साल की हक़ीक़त भी उतनी ही दर्दनाक रही है लेकिन इस के ही साथ कुछ ऐसा भी हुआ जिसने अहसास दिलाया कि हमारे बिहार और हमारे लोगों के अंदर की संवेदनाएं अभी भी सांस लेती हैं। मुश्किल की इस घड़ी में हमारे बीच से कुछ लोग, खास कर के युवा, अपने अपने हिस्से की शम्मा ले कर मुज़फ़्फ़रपुर के अँधेरे से लड़ने वाली मशाल बन कर उभरे हैं। चमकी बुखार से जुड़ी मुज़फ़्फ़रपुर से आती ख़बरें परेशान कर देने वाली रही हैं। तेज़ी से बढ़ता बच्चों की मौत का आंकड़ा और प्रशासन की इस महामारी को रोक पाने में असमर्थता ने दिल दहला देने वाली और निराश करने वाली हक़ीक़त से हमारा सामना करवाया। ऐसे में जहाँ आम लोगों के अंदर गुस्सा और कुछ ना कर पाने की बेबसी थी उसी बीच से कई ऐसे लोग सामने आये जिन्होंने ऐसी नाउम्मीदी के बीच में उम्मीद और इंसानियत के ज़िंदा होने के सुबूत दिए। फेसबुक पोस्ट से शुरू हुई मुहीम 3 जून से शुरू हुआ मौतों का सिलसिला 12 दिनों में 100 का आंकड़ा पार कर चुका था। जब हालत इतनी ख़राब हो गयी तो देश भर की मीडिया की नज़र मुज़फ़्फ़रपुर की तरफ मुड़ी। लेकिन बिहार झारखण्ड से ताल्लुक रखने वाले कुछ पत्रकार शुरुआत से ही चमकी बुखार की वजह से होने वाली मौतों के बारे में बात कर रहे थे और सरकार से जवाबदेही की लगातार मांग कर रहे थे। इनमें आनंद दत्ता, पुष्यमित्र और विकास कुमार की प्रमुख आवाज़ें थी। ये लगातार मुज़फ़्फ़रपुर में बने हालातों के बारे में लिख रहे थे। आनंद दत्ता ने ना सिर्फ पत्रकारिता से ईमानदारी दिखाई बल्कि मुज़फ़्फ़रपुर जा कर ये मरीजों और उनके परिजनों की सुविधाओं के इंतजाम में भी जी जान से लगे। उन पत्रकारों ने जिन्होंने पत्रकारिता के धर्म के साथ साथ इंसानियत का नमूना पेश किया उनमे एक नाम आमिर हमजा का भी है जिन्होंने रास्ते में अपने चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे को ले कर रोती माँ को उसके बच्चे के साथ अस्पताल पहुँचाया जिस से बच्चे की जान बच सकी। जब 100 से ज़्यादा बच्चों ने चमकी बुखार की चपेट में आ के दम तोड़ दिया तो पत्रकार पुष्यमित्र ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिये लोगों को साथ आ कर ज़मीनी स्तर पर काम करने की अपील की। “3 जून से शुरू हुआ मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का सिलसिला आजतक लगातार जारी है। कल भी 18 बच्चे मर गये। आँकड़ा सौ के पार चला गया है। जो हालात हैं उससे जाहिर है सरकार इन मौतों को रोक पाने में बिल्कुल सक्षम नहीं है। मगर क्या अपने बच्चों को हम सरकार के भरोसे मरने दें? क्या हम उन्हें नहीं बचा सकते? अगर वाकई आप मुजफ्फरपुर के बच्चों को बचाना चाहते हैं तो मेरे पास एक प्लान है। हम सब मुजफ्फरपुर चलें। प्रभावित इलाकों में रात के वक़्त घर घर जाकर पता करें, बच्चा भूखा तो नहीं है। हम यहां से ग्लूकोज, ओआरएस और ऐसी ही दूसरी चीजें लेकर चलें। अधिक बीमार बच्चों को तत्काल अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करें। अगर हम एक भी बच्चे को बचा पाते हैं तो यह मानवता की सेवा होगी। तो अगर कोई साथी इस प्लान से सहमत है तो बताये। हम आज शाम पटना में कहीं बैठते हैं। अगर किसी को यह उपाय बेकार लग रहा है तो वह भी बताये, और उसके पास प्लान बी हो तो वह भी। क्योंकि अब किसी को कोसने या दोष देने का वक़्त नहीं। यह राहत और बचाव अभियान चलाने का वक़्त है। क्योंकि बारिश अभी 26 जून तक दूर है। जो चलने के लिये तैयार हो, प्लीज कमेंट करके बतायें” 3 जून से शुरू हुआ मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का सिलसिला आजतक लगातार जारी है। कल भी 18 बच्चे मर गये। आँकड़ा सौ के पार… Posted by Pushya Mitra on Saturday, June 15, 2019 पुष्यमित्र की इस पोस्ट के बाद बिहार के अलग अलग हिस्सों से युवाओं की एक टीम मुज़फ़्फ़रपुर के लिए दवाएं, थर्मामीटर, ORS जैसी ज़रूरी चीज़ें ले कर रवाना हुई। शुरुआत में पत्रकारों, छात्रों और एक्टिविस्टों की इस टीम में सत्यम कुमार झा, सोमू आनंद, हृषिकेश शर्मा और रोशन झा शामिल थे। पेशे से स्वतंत्र पत्रकार सत्यम कुमार झा बताते हैं कि, “पुष्यमित्र और विकास कुमार लगातार फेसबुक पर मुज़फ़्फ़रपुर में हो रही मौतों के बारे में लिख रहे थे। मैंने इस पर एक स्टोरी करने की सोची। 11 जून को मैं मुज़फ़्फ़रपुर आया तो मैंने देखा कि हालत बहुत ख़राब है। मुझे पता चला कि उसी दिन 90 बच्चे जो SKMCH में भर्ती हुए उन में से 32 मर गए यानी कि 33% से ज़्यादा बच्चे मर गए थे। यह मेरे लिए काफी दुखदायी था। मैंने पटना वापस आ कर पुष्यमित्र भैया से इस बारे में बात की। हमने सोचा कि अगर सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर रही है तो हमें अपने स्तर से ही कुछ करना होगा। जब 16 तारीख को पुष्य भैया ने फेसबुक पर पोस्ट डाला तो उस वक़्त ज़्यादा लोग सामने नहीं आये लेकिन सोमू आनंद ने कहा कि वो साथ आएंगे। पटना से मैं और हृषिकेश शर्मा मुज़फ़्फ़रपुर को रवाना हुए और अपने शहर से सोमू आनंद और रोशन झा चार कार्टन राहत सामग्री ले कर हमारे साथ आये। मुज़फ़्फ़रपुर में हमें संस्था ‘हेल्प ऐज इंडिया’ से काफी सहयोग मिला। ” इस टीम का हिस्सा थे: सोमू आनंद, रौशन झा, सत्यम झा, हृषिकेश शर्मा, मनीष कायस्थ, कुमार प्रतिष्क, राजा रवि, राहुल कुमार , प्रिंस गुप्ता, सूरज कुमार, विकास केसरी, कनक भारती, अभिषेक कुमार, मोहित पांडेय और अन्य लोगों का जुटता गया कारवां सोशल मीडिया की लाख बुराइयां भले ही हो लेकिन कई मौकों पर लोगों को किसी सामाजिक या राजनीतिक मुद्दे पर एकजुट कर एक आंदोलन खड़ा करने का इसका अच्छा खासा इतिहास रहा है। इस मामले में भी सोशल मीडिया का बड़ा योगदान रहा। मुज़फ़्फ़रपुर में ज़रूरतमंदों को मदद पहुँचाने में जब पैसों की समस्या सामने आयी तो ग्राउंड लेवल पर काम कर रही टीम ने सोशल मीडिया का रुख किया। फेसबुक के माध्यम से क्राउड फंडिंग की उनकी अपील को बिहार के लोगों तक पहुँचाने का काम बिहार से जुड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और लोगों के बीच पहुँच रखने वाले व्यक्तियों ने किया। उनके माध्यम से यह अपील ना सिर्फ बिहार बल्कि दुनिया भर के लोगों तक पहुंची। एक तरफ तो लोगों ने बढ़ चढ़ कर इस नेक काम के लिए अपनी तरफ से सामर्थ्य अनुसार पैसे और ज़रूरी सामान दिए वहीं कई युवा ना सिर्फ इस टीम के साथ वालंटियर्स बन के जुड़े बल्कि कईयों ने अपनी तरफ से पहल करते हुए अलग अलग टीम बना कर मुज़फ़्फ़रपुर की तरफ रुख किया। पेशे से डेंटिस्ट, डॉ आकांक्षा को जब मुज़फ़्फ़रपुर में काम कर रही टीम के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने क्लिनिक के 5 डॉक्टर्स के साथ वहां जाने का तय किया। जाने माने कार्टूनिस्ट पवन भी उनकी टीम के साथ थे। पटनाबीट्स से बात करते हुए डॉ. आकांक्षा ने बताया कि, “मुझे युवाओं की एक टीम के मुज़फ़्फ़रपुर में जा के मदद पहुँचाने की बात पटनाबीट्स के माध्यम से पता चली। मैंने उस टीम से संपर्क किया और हमने अपनी एक टीम बना कर वहां जाने का प्लान बनाया। जब हमने इस बारे में पोस्ट किया तो कई लोग खास कर के हमारे पेशे से जुड़े लोग अपनी तरफ से पैसे और ज़रूरी सामान की मदद देने के लिए आगे आये। हमारी टीम ने तीन गांवों का दौरा किया और मुख्यतः लोगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने पर ध्यान दिया।” इस टीम का हिस्सा थे: डॉ. पारख सिन्हा, डॉ. आकांक्षा अभिषेक, डॉ. निकिता रंजन सिन्हा , डॉ. नरगिस रहमान, कार्टूनिस्ट पवन , डॉ. धीरज पटेल, डॉ. अलोक अग्रवाल, वासिफ इमाम, विनय अग्रवाल, अजीत कुमार, अभिजीत नारायण, सचिन गुप्ता, ऋषभ पांडेय, केशव, शिराज, संदीप, समीर, रणधीर, बिहार पुलिस के तीन कर्मचारी और अन्य मुज़फ़्फ़रपुर में राहत पहुंचाने के लिए कई टीमें लगी हुई थी और उनके बीच सराहनीय सामंजस्य देखने को मिला। सारी टीमें एक दूसरे से संपर्क में थी और इस तरह से वो ज़्यादा से ज़्यादा गाँवों तक राहत पहुँचा पा रहे थे। इसी तर्ज पर जो एक और टीम थी वो SKMCH ना जा कर आस पास के गाँवों में राहत सामग्री ले कर गयी ताकि जो छूट रहे हैं उन तक भी राहत पहुंचे। पटना से गयी इस टीम ने SKMCH के कुछ स्टूडेंट्स और जूनियर डॉक्टर्स से संपर्क कर उनसे ज़रूरी जानकारी जुटाई। हमारी बात इस टीम का हिस्सा रहे फोटोग्राफर सौरव अनुराज से हुई। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में उनकी बात सबसे पहले अपने साथी फोटोग्राफर रोहित रॉय से हुई। सौरव ने कहा कि, “मुझे रोहित (रॉय) भैया का फ़ोन आया कि हमलोग इस के लिए कुछ कर सकते हैं। हमें पहले तो ज़्यादा जानकारी नहीं थी तो हमने SKMCH के कुछ स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स की मदद ले कर एक रिपोर्ट बनाई कि किस एरिया से ज़्यादा पेशेंट आ रहे हैं। हम वहां थर्मामीटर, ग्लूकोज़, ORS जैसी ज़रूरी चीज़ें ले कर गए। ” इस टीम का हिस्सा थे: वृकेश भास्कर, मुकुल निशांत, सिद्धांत सेतु, शशि सिंह, रौशन कुमार, लकी पॉल, अमृतेश कुमार, उज्जल सिन्हा, सर्वेश कुमार, अमृत रंजन, हिमांशु राज, गणेश कुमार, रवि राज, रोहित रॉय, सौरव अनुराज, SKMCH से प्रतीक और कुछ स्टूडेंट्स और अन्य। यह मुजफ्फरपुर के कांटी में MSU द्वारा लगाये गये मेडिकल कैम्प की तस्वीर है। Dr. Kafeel Khan उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से डॉक्टर कफ़ील खान ने भी मुज़फ़्फ़रपुर आ कर अपनी सेवाएं ज़रूरतमंदों को दी। मिथिला स्टूडेंट यूनियन के छात्र जुझारू तौर से मुज़फ़्फ़रपुर में राहत पहुँचाने में लगे रहे। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के विजेता रहे सुशील कुमार ने भी लोगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने का सराहनीय काम किया है। हमने जिन लोगों और टीमों का ज़िक्र किया है उनके अलावा भी और कई लोग रहे हैं जिन्होंने चमकी बुखार के खिलाफ इस लड़ाई में हिस्सा ले कर जाने कितनी ही जानें बचाई है। मुमकिन है कि हम उन तक नहीं पहुँच पाए लेकिन उनके जज़्बे और उनकी इंसानियत को हम सलाम करते हैं। मुश्किल की इस घडी में जिस तरह लोग एकजुट हो कर सामने आये यह बात हमारा विश्वास फिर से इंसानियत पर कायम करने का काम करती है। राज्य के नागरिकों का इतनी बड़ी संख्या में सामने आ कर ये ज़िम्मेदारी उठाना शानदार तो है लेकिन हमें ये भी याद रखने की ज़रूरत है कि इसकी नौबत नहीं आनी चाहिए थी। यह नागरिकों की नहीं बल्कि सरकार की ज़िम्मेदारी है की हमारे बच्चे इस तरह बेमौत ना मारे जाये। जिन घरों में किलकारियां गूंजनी थी वो मौत की ख़ामोशी से सुन्न ना पड़ जाये। उम्मीद करना हमारे हाथ में है कि सरकारें जागेंगी और इस हक़ीक़त को दुहराया नहीं जाएगा। Do you like the article? 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