HomeBiharपटना पुस्तक मेले में कल हुई बिहार के तीन पत्रकारों के पुस्तकों का लोकापर्ण Satyam Kumar Jha Bihar, Bihari आज ज्ञान भवन में आयोजित हो रहे 24वें सीआरडी पटना पुस्तक मेले के आखिरी रविवार को बिहार के तीन पत्रकारों की किताबें एक ही मंच से लोकार्पित की गई। आज लोकापिर्त की गई किताबों में वरीय पत्रकार अवधेश प्रीत की अशोकराज पथ , विकास कुमार झा की गयासुर संधान और युवा पत्रकार पुष्य मित्र की चंपारण 1917 शामिल थे। पुस्तकों का लोकार्पण श्री दिवाकर, वरिष्ठ कवि लीलाधार मंडलोई , अरुण कमल, इतिहास अध्येता भैरवलाल दास के द्वारा किया गया। इस अवसर पर अवधेश प्रीत, विकास कुमार झा और पुष्य मित्र के साथ ही वरीय लेखक, चिंतक, सामाजिक कार्यकता और रंग और संस्कृतिकर्मी भी शामिल रहे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ कवि अरूण कमल ने कहा कि इन तीनों पुस्तकों में 2 नान फिक्शन और फिक्श्न की संधि रेखा पर है। जब नील का दाग मिटा, शायद चंपारण पर दूसरा उपन्यास है। इसमें गांधी के अवतरण से पहले की कहानी है। इसमें राजेंद्र बाबू की डायरी भी शामिल है। गयासुर संधान के बारे में बताते हुए उन्होने कहा कि नगरों पर लिखने की पंरपरा हमारे यहां कम ही रही है। इस कडी में यह पुस्त्क काफी महत्वूपर्ण साबित होगी। अशोक राजपथ पटना की धुरी है और हलचल से भड़ा है। साथ ही इसमें मगही के बोलचाल में शामिल और प्रचलित शब्द भी है। Share Pin वरिष्ठ कवि लीलाधर मडलोई ने कहा कि 20 सदी के उतरार्ध में बाजार के साथ गठजोड से हमारी सारी संचार विधाएं समाचार, टीवी, पत्रिकाएं प्रभावित हुई हैं पर हमारा साहित्य अब भी इससे अछूता है। उन्होनें कहा कि यह तीनों रचनाएं अपने-अपने स्थानीयता के स्तर पर, भाषा के स्तर पर शोध के स्तर पर और चिंतन के स्तर पर काफी उत्कृष्ट है। खासकर चंपारण की पुस्तक इतिहास और कथ्य का अनूठा मिश्रण है। भैरवलाल दास ने तीनों लेखकों के साथ ही राजकमल प्रकाशन को बधाई दी। उन्होनें कहा कि चपांरण जब नील का दाग उपन्यास उन सभी योद्धाओं को याद करता है जिन्होनें गांधी को गांधी बनाने में सहयोग किया। श्री दिवाकर ने कहा कि तीनों लेखकों को उनकी कृति के लिए बधाई देते हुए कहा कि तीनों रचनाएं अपने आप में अनूठी और पठनीय है। Share Pin पुस्तक के बारे में बताते हुए पुष्यमित्र ने कहा कि यह कहानी चंपारण की धरती और वहां के लोगों के बारे में है जिसने मोहनदास को महात्मा बनाया। उस किसान राजकुमार शुक्ल और शिक्षक पत्रकार पीर मोहम्मद मूनिस के बारे में है, जिन्हें हमेशा से भरोसा था कि गांधी ही चम्पारण के किसानों के दुःख दूर कर सकते हैं। 1915 से ही शुकुलजी गांधी के पीछे पड़े थे। यह उन तमाम गुमनाम लोगों की कहानी है जिनके नाम इतिहास के पन्नों से बाहर हैं। गांधी दुनिया भर के नायक हैं, मगर ये हमारे नायक हैं। हम बिहारियों के नायक है, जिन्हें याद रखना हमारा फर्ज है। ये ऐसे नायक हैं, जिन्होंने गांधी को नायकत्व प्रदान किया। वह जिंदा जमीन दी जिस पर गांधी ने सत्याग्रह की इमारत खड़ी की। यह किताब उन्हीं नायकों की कहानी है। अपने उपन्यास अशोक राजपथ के बारे में बताते हुए अवधेश प्रीत ने कहा बिहार में छात्र राजनीति का काफी महत्व रहा हैं । 1974 के छात्र आंदोलन से सत्ता और सामाजिक परिर्वतन हुए। युवा राजनीति के बारे में बहुत कम लिखा गया हैं मेरा यह उपन्यास छात्र राजनीतिऔर उससे जुड़े सवालों पर है। Share Pin विकास कुमार झा ने गयासुर संधान के बारे में बताते हुए कहा कि यह विश्व आस्था के जुंडवा नगर गया और बोध गया पर केंद्रित है। यह कल्पना, इतिहास, लोककथा, दंतकथा, मिथक और यर्थाथ का मिश्रण है। यह बताती हैं कि कैसे अनैतिक कामनाएं-एषनाएं भस्म हो जाती हैं। गया में कामनाओं और एषनाओं को कोई स्थान नहीं है। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए राजकमल प्रकाशन के अलिंद माहेश्वरी ने कहा कि राजकमल का पटना से पुराना संबंध रहा है। अगले साल हमारा प्रयास होगा कि हम और ज्यादा पुस्त्कें आपलोगों के लिए ले कर आएं। मंच संचालन रंगकर्मी जयप्रकाश ने किया। कार्यक्रम में कवि डॉ विनय कुमार, संतोष दीक्षित कथाकार, कर्मेंदु शिशिर, रंगकर्मी अनीश अंकुर के साथ ही साहित्य प्रेमी भी उपस्थ्ित रहे। Share Pin लेखकों के बारे में . विकास कुमार झा वरिष्ठ पत्रकार विकास कुमार झा की पुस्तक गयासुर संधान है. नाम से ही जाहिर है, यह उपन्यास गया शहर पर आधारित है. विकास कुमार झा को हम सब अपने जमाने की बेहतरीन राजनीतिक पत्रिका माया में उनकी लंबी पत्रकारिता की वजह से जानते हैं. और उस दौर में माया पढ़ने वाला कोई भी पाठक उन्हें भूल नहीं सकता. पहले भी उन्होंने मैकलुसकीगंज जैसा शानदार नावेल लिखा है, जो झारखंड में एंग्लो इंडियन्स की बस्ती की कहानी है. पिछले साल उनकी एक नई किताब वर्षावन की रूपरेखा आयी थी. अवधेश प्रीत दूसरी किताब लेखक-पत्रकार अवधेश प्रीत की है. इस उपन्यास का नाम है अशोकराज पथ. हां, वही पटना का मशहूर अशोकराज पथ. हिंदुस्तान, पटना के मैगजीन एडिटर रह चुके अवधेश प्रीत की साहित्य जगत में भी बराबर की पैठ रही है. उनके कई कथा संग्रह पहले ही आ चुके हैं और लोगों द्वारा पसंद किये गये हैं. अब वे पुराने पटना की मशहूर सड़क अशोकराज पथ को केंद्र बनाकर एक उपन्यास लेकर आ रहे हैं. पुष्यमित्र पुष्यमित्र की किताब ‘जब नील का दाग मिटा, चम्पराण 1917’ चम्पारण के नील विद्रोह की इतिहास गाथा है. वे प्रभात खबर में घुमंतू पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं. इसी साल उनका नावेल रेडियो कोसी प्रकाशित हुआ था, जिसे पाठकों ने काफी पसंद किया था. इससे पहले वे सुन्नैर नैका नावेल और फरकिया रिपोर्ताज लिख चुके हैं, जो ई-बुक के रूप में प्रकाशित है. 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