HomeBiharपटना : कल और आज | निवेदिता शकील की ज़ुबानी PatnaBeats Bihar हम अपने रोज़मर्रे की ज़िन्दगी में ऐसे व्यस्त होते हैं कि धीरे-धीरे कैसे हमारे आस-पास का शहर बदलता जाता है ये हम नोटिस नहीं कर पातें। ये बदलाव हमें तब नज़र आता है जब हम कुछ पल रुक के अपने शहर के अतीत और हमारे इस शहर में गुज़ारे वक़्त की तरफ मुड़ के देखते हैं। जानी-मानी रंगमंच-कर्मी, लेखिका और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहने वाली निवेदिता शकील अपनी एक नयी श्रृंखला “पटना, ओह मेरे पटना” की पहली कड़ी में हमारे शहर के इन्ही बदलावों और इनके खुद के अनुभवों को साझा कर रही हैं। पटना ओह मेरे पटना -1 -निवेदिता- मेरे जीवन का लंबा समय पटना में ही बीता है . और लगता है जीवन के आखरी दिन भी यहीं बीत जायेंगे .पापा नौकरी में थे तो हमसब उनके साथ वहां-वहां होते जहां-जहां उनका तबादला होता .फिर एक अरसे से वे यही रहने लगे .मैंने अपने देश को देखा ,जाना है . दुनिया के कुछ हिस्से भी घूम आयी हूं . पर जो बात अपने शहर में है वो बात और कहां .दरअसल कोई देश , गांव या शहर वहां के लोगों की वजह से अच्छा लगता है. वे लोग जो आपसे जुड़े हों, जिस शहर को आपसे मुहब्बत हो , आपके सुख , दुख का हिस्सेदार हो . वह शहर चाहे कितना भी बेरंग हो उसकी मिट्टी , उसकी हवा और पानी में आप खुद को पातें हैं , आप उसकी हरारत महसूस कर सकते हैं . यूं देखिये तो हमारा शहर निहायत साधारण है ..सड़कें बहुत चौड़ी नहीं हैं . बेतरतीब दुकानें , गाड़ियां , रिक्शा , ठेला और गायें सड़कों पर ही रहती है . आप सड़क पर चलना चाहें तो आप चल नहीं सकते . हार्न और गाड़ियों के शोर से मन घबरा जाये .क्या आप एक ऐसे शहर की कल्पना कर सकतें हैं जिसमें बाग़ न हों , पेड़ पौधें न हों ,पत्तियों की सरसराहट और चिड़ियों की चहचाहट सुन न पायें. यहां मौसम का फर्क सिर्फ आसमान में नज़र आता है या फिर मंदिर में बिकने वाली फूलों की टोकरियों से. गर्मियों के मौसम में सूरज मकानों को सूखा देता है और दीवारें गर्द से भर जाती है . पतझड़ के दिनों में हमारा शहर दलदल में तब्दील हो जाता है . फिर भी ये शहर प्यारा है मुझे . मेरी धड़कनों में बसा है . 40 साल गुज़र गए इस शहर में रहते हुए . इन 40 सालो में शहर भी बदल गया और उसकी रफ़्तार और चाल भी . इसका मिज़ाज भी बदला और तहजीब भी . पटना गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है. गंगा नदी नगर के साथ एक लंबी तट रेखा बनाती है. जिसके तीनों ओर नदियों का घेरा है . गंगा, सोन नदी और पुनपुन उसके पहलू में है . कभी वक़्त था जब सड़क किनारे पलाश के लाल-लाल फूलों वाले घने दरख्त और नारियल के झुंड और गंगा की लहरें जगमगाती रहती थी . Dak Bungalow as seen in the 70s PC Rajiv Soni शहर के बीचों-बीच एक काफी हॉउस था . जिसमें राजनीति , कला और पत्रकारिता के तमाम किस्से लहराया करते थे . पटना कालेज गंगा के किनारे बसा है . उनदिनों गंगा कालेज के सीने से लगी-लगी बहती थी . काली घाट आज भी मशहूर है . पहले इतनी भीड़ नहीं थी . कालेज के बाद हमसब घाट के सिम्त जाने के लिए सीढ़ियों से उतरते और वही मजमा लगाते.दूर दूर तक नारियल के झुंड हवा में सरसराते .झिलमिलाते पानी के रंग सुर्ख सूरज सा हद्दे नज़र तक फैलती चली जाती . कहते हैं पहले पटना का नाम पाटलिग्राम या पाटलिपुत्र) था .पाटलिग्राम में गुलाब (पाटली का फूल) काफी मात्रा में उपजाया जाता था. गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा बनाकर उनका व्यापार किया जाता था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम हो गया. लोककथाओं में, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है. उसने अपनी रानी पाटलि के लिए जादू से इस नगर का निर्माण किया. इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा. पाटलिपुत्र नाम पतली ग्राम से ही पड़ा . कहते हैं पटना नाम पटनदेवी (एक हिन्दू देवी) से प्रचलित हुआ है. एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पतन से आया है जिसका अर्थ बंदरगाह होता है. मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनीज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है. यह ऐतिहासिक नगर पिछली दो सहस्त्राब्दियों में कई नाम पा चुका है – ऐसा समझा जाता है कि पटना नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ. किस्से हज़ार हैं पर हमलोगों ने जो पटना देखा वो आंदोलन और कला की जमीन रही है . पटना कालेज के सामने पीपुल्स बुक हॉउस हुआ करता था . जो इश्क और क्रांति का गवाह रहा वर्षो तक . वही मैं नागार्जुन से मिली . वही आलोक धन्वा, अरूण कमल समेत सभी साहित्य से जुड़े लोगों का जमावड़ा रहता . वही अरुण जी की कविता अपनी केवल धार पढ़ा … अपना क्या है इस जीवन में सब तो लिया उधार सारा लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार . वहीं आलोक धन्वा की कविता गोली दागो पोस्टर का पाठ किया … जिस ज़मीन पर मैं अभी बैठकर लिख रहा हूँ जिस ज़मीन पर मैं चलता हूँ जिस ज़मीन को मैं जोतता हूँ जिस ज़मीन में बीज बोता हूँ और जिस ज़मीन से अन्न निकालकर मैं गोदामों तक ढोता हूँ उस ज़मीन के लिए गोली दागने का अधिकार मुझे है या उन दोग़ले ज़मींदारों को जो पूरे देश को सूदख़ोर का कुत्ता बना देना चाहते हैं. पटना ने जिन्दगी के कई रंग दिए . पटना ने जीना सिखाया और लड़ना . कितनी हसींन तर्ज –तामीर है यह . आप पटना के पुराने मकानों को देखें . सूर्ख फूलदार पर्दों वाले कमरों में जिसके बाहर पहाड़ी गुलाब खिले थे और दूर आबशारों की आवाज आती थी वही पटना हमारा पटना है आपको यकीं नहीं है तो जरा तारीख की नज़रों से देख लें. PC: Saurav Anuraj Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook and Twitter. Quote of the day:“Do not lose hope — what you seek will be found. Trust ghosts. Trust those that you have helped to help you in their turn. Trust dreams. Trust your heart, and trust your story. (from 'Instructions')” ― Neil Gaiman, Fragile Things: Short Fictions and Wonders