HomeBiharएक बिहारी की मालदह आम से जुड़ी खास यादें Prashant Jha Bihar सीज़न का पहिला मालदह आम आज नसीब हुआ, भर पेट खाना खाने के बाद मालदह आम का कतरा खाने जैसा तृप्ति बस सचिन का स्ट्रेट ड्राइव ही दे पाया है, समझिये। गाड़ी का शीशा नीचे कर के पूछे की “भैय्या मालदह आम है?” पहिला जवाब आया कि “भैय्या अपने दने के हैं?” अलग जगह अलग भाषा। कोई सफेदा कोई लंगड़ा, जिसको जिसमे तृप्ति मिला वो नाम। लेकिन एक बार आप मालदह का महक पहचान लिए फिर आम के ठेला तक अपने खीचा जाइयेगा। गांव घर का क्या बात करे कोई, बचपन में गर्मी छुट्टी नानी गांव में बीतता था। चार आम का गाछी/बागान, हमारे यहाँ कॉलम बोलते हैं। पूरा दुपहरिया ममेरा, मौसेरा भाई बहन के साथ कॉलम में। आज ई कॉलम तो कल दूसरा। एक-एक कॉलम कइयो बीघा में, आम पहचानना नहीं आये तो इतना वैराइटी देख के अकचका जाइए की कौन सा खाएं। हवा तेज़ हुआ गच्छपक्कू आम नीचे गिरा धप से। सब भाई बहन एक साथ भागा, इस रेस में कोई एलिमिनेशन नहीं था, अगला बार सब फिर भागेगा धप के आवाज़ में। डार्विन का ‘सर्वाइवल ऑफ़ फिट्टेस्ट’ का थ्योरी वहीं से समझा। बिज्जू, सिन्दुरिया, सुकुल, बम्बइया, कलकतिया, कठम्मि, चपरा, खजुरिया, केरवा, कृष्णभोग, आम्रपाली, दशहरी और केतना का नाम अब ध्यान नहीं पड़ रहा है, जो मन सो खाइये। रात को आंधी तूफ़ान चला तो सब अपना अपना बोरा ले के भागता था मामा के लीडरशिप में, एक एक गो टॉर्च सब के हाथ में, देह पर भी आम गिरे भट से, बारिश में आम चुनते रहिये लेकिन थोड़ा बच के, का पता कब कोई पेड़ का डार गिर जाए, लेकिन इतना ध्यान कौन दे? बोरा में सबसे ज्यादा आम भरने का कम्पटीशन रहता था, घर जा के बोरा उझलिये जो सबसे ज्यादा लाया उसके आँख में शौर्य का परिभाषा दिखता था। फिर बाल्टी लीजिये पानी डालिये और उसमे आम डाल के बैठ जाइए खाते रहिये खाते रहिये। कोई पाहुन आएं हैं, उनको ख़ास चुन के दिया जाएगा एक एक हाथ वाला मालदह, अगर किसी को प्लेट में कतरा काट के आम दिया जा रहा है तो समझ जाइये की ऊ कोई न कोई महत्व वाले बाबू हैं। आम का मज्जर से टिकोला, फिर अचार से पका आम और फिर आम से अमावट का सफ़र आप अगर देखे हैं तो बचपन कितना अद्भुत रहा होगा ये लिखना बेकार है। फिर दिन आता था आम तोड़ाने का, एक-एक कॉलम में 3 ट्रेक्टर लगा हुआ है, बड़ा बड़ा लग्घी ले के आम तोड़ा रहा है, बच्चे हैं तो चुप चाप साइड में देखते रहिये और आम खाते रहिये। आम तोड़ा के घर आया नानी पाल पे लगाएगी (आम को विशेष तरीके से रखने को पाल लगाना कहते हैं), कोई दवाई नहीं कोई केमिकल नहीं, आम खुद पाल पे पकेगा, उठाइये खाइये अगर दुनिया में कहीं और स्वाद मिल जाए वैसा तो ई पूरा लेख बेईमानी। लाखों का आम बेचा गया, पटना, मधुबनी, दिल्ली, पूर्णिया वाला सब संबंधी के यहाँ भी बोरा के बोरा पंहुचा दिया गया है, फिर भी सड़ जाएगा बहुत आम, फिर बनेगा अमावट। आम के सीज़न में खाने पीने के बाद 10-15 आम में चभक्का नहीं लगाएं तो मिथिलांचल में हंसी के पात्र बन जाइयेगा। और दही-चूड़ा-आम का गज़ब कॉम्बिनेशन स्वाद डिज़र्व करता है शब्द नहीं। इतना आम इतना आम कि बहुत दिन तक खरीददारी भी आम के बदले होता था। यहाँ 2 किलो खरीदे हैं, 10 आम चढ़ा, इतना आम बहुत बार गुठली/आंठी से पेड़ जन्माने के चैलेन्ज में बर्बाद कर देते थे बचपन में। खैर अब नाना, नानी नहीं हैं और वक़्त का भी क्राइसिस रहता है, लेकिन एक खालिस मालदह आज भी सब कुछ जस का तस सामने ला खड़ा करता है, हाहाहा रईसी भी तो वक़्त और जगह ही तय करता है। Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook and Twitter. Quote of the day: “Find joy in everything you choose to do. Every job, relationship, home... it's your responsibility to love it, or change it. " -Chuck Palahniuk