हमारी हमेशा से ही कोशिश रही है कि हम बिहार की रचनात्मकता, यहां के अहम् व्यक्तित्व और किस्से कहानियों से पूरी दुनिया को रूबरू करा सकें । इसी सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए हमने एक कविताओं की श्रृंखला “एक कविता बिहार से” की शुरुआत की थी जिसको लोगों ने खुली बाहों से स्वीकारा और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। लोगों ने देखा की बिहार का साहित्य कितना वृहद् है और कैसे अलग अलग भाषाओं और बोलियों की कविताएं समान रूप से आकर्षित करने में सक्षम होती हैं।
उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम कुछ और बिहारी रचनाओं से आपका परिचय करवाएंगे और कोशिश रहेगी कि सारी कविताएं एक से बढ़कर एक हों।
तो “एक कविता बिहार से” में आज हम सुना रहे हैं “प्रियदर्शी मातृ शरण” की कविता “क्या तुम भी किस चक्कर में हो?”
प्रियदर्शी पेशे से पटना उच्च न्यायालय में वकील हैं और दो वर्ष की उम्र में मुंगेर से पटना आये थे। अपने दादाजी के लिए कविताएं पढ़ते-पढ़ते कब छंद, ताल और पद्य की समझ विकसित हो गयी, उन्हें खुद नहीं पता।
प्रियदर्शी की कविताएं अक्सर व्यक्तिगत एवं सामाजिक रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आती हैं। आइये पढ़ते हैं उनकी कविता “क्या तुम भी किस चक्कर में हो?” जिसकी पृष्ठभूमि समझाने के जवाब में वो कहते हैं कि “हर कविता के पीछे किसी प्रेरणा का छुपा होना भी मैं ज़रूरी नहीं समझता।”
क्या तुम भी किस चक्कर में हो
क्या तुम भी किस चक्कर में हो, अक्खड़ दुनिया उलझाती है,
सुलझाने बैठोगे, तो, हर बात पर गाँठें पड़ जातीं हैं|
गाँठ पड़ी फिर अक्कड़-बक्कड़ कोई मन्तर नहीं चलेगा,
धक्का-मुक्की, रस्सा-कशी में तेरा ही दम निकलेगा|
दम लो थोड़ा, थाम हथौड़ा, सौ सुनार की हो जाने दो,
अपनी पाली, एक हथौड़ा जमा दो, अपना हक पाने को|
पर हक की मारा-मारी में हकमारी भी हो जाती है,
क्या तुम भी किस चक्कर में हो, अक्खड़ दुनिया उलझाती है|
पाना-खोना, हँसना-रोना – दुनिया का दस्तूर यही है,
इसकी-उसकी सुनकर रोया, दुनिया में मजबूर वही है|
मजबूरी की ऐसी-तैसी करके ही किस्मत जागेगी,
दुनिया जो बोलेगी, सुनोगे, सर पर पैर धरे भागेगी|
भागती किस्मत, अपनी धुन के मान से ही वापस आती है,
क्या तुम भी किस चक्कर में हो, अक्खड़ दुनिया उलझाती है|
अपनी धुन है अपना सिक्का, खोटा नहीं खरा निकलेगा,
जितनी कड़ी कसौटी कस लो, दावा है कि चल निकलेगा|
चलते-चलते हौले से रफ़्तार में गाड़ी आ जाती है,
क्या तुम भी किस चक्कर में हो, अक्खड़ दुनिया उलझाती है|
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Quote of the day: “Life is brighter than we think and better as we are. We just need to open our eyes and follow our heart.”
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