जानिए विश्वप्रख्यात स्वर्गीय कर्पूरी देवी से जुड़ी कुछ बातें

दुनिया भर में प्रचलित मधुबनी चित्रकला और सुजनी कला की बेजोड़ कलाकार और राजनगर प्रखंड के अंतर्गत आने वाली रांटी गांव निवासी दिवंगत कर्पूरी देवी का अंतिम संस्कार उन्हीं के गांव में हुआ । वे लंबे समय से बीमार चल रही थीं पर अंततः प्रकृति से द्वंद हार गईं और काल के गाल में समा गईं। सोमवार आधी रात के बाद 12 :40 बजे मधुबनी के मंगरौनी स्थित हार्ट हॉस्पीटल में 90 साल की अवस्था में उन्होंने आखिरी सांस ली।

कर्पूरी देवी

अपनी कला से समस्त विश्व में ख्याति पाने वाली और मधुबनी जिले को गौरव दिलाने वाली इस महान कलाकार के निधन की खबर फैलते ही कलाकारों और कलाप्रेमियों में शोक की लहर फैल गई है। सोमवार से हीं उनके आवास पर पार्थिव शरीर को देखने वालों और
श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा है। उनके निधन से ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे मानों कला का एक युग समाप्त हो गया। तक़रीबन सात दशक की कलायात्रा में इन्होंने इतनी कृतियां रचीं जिसे कला जगत के लिए भूलना असंभव है ।

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उनका जन्म 28 अप्रैल 1929 को मधुबनी जिले के पड़ौल गांव में हुआ था। सातवीं कक्षा पास और राजनगर प्रखंड के रांटी गांव निवासी कृष्णकांत दास से ब्याही कर्पूरी देवी ने बाल्यावस्था में ही अपनी माता से यहां की पारंपरिक मधुबनी चित्रकला की बारीकियां सीखीं। बाद में वह कालांतर में अपने कला-कौशल से इसे नए आयाम पर पहुंचाती चली गईं। वे स्थानीय सुजनी कला में भी पारंगत थीं। दो बार अमेरिका, एक बार फ्रांस व चार बार जापान का भी भ्रमण कर उन्होंने वहां अपनी कला का परचम लहराया।कर्पूरी देवी

 

अगर उनके व्यावहार की बात की जाए तो वो हमेशा से हंसमुख और मिलनसार रहीं रहीं हैं। वह अंतिम बार मधुबनी से पटना इसी साल जनवरी में आयी थीं, बिहार म्यूजियम में उपेन्द्र महारथी संस्थान के इंटरनेशनल सेमिनार में उन्होंने शिरकत दिया था । कर्पूरी देवी के हार्ट में पेसमेकर लगा था, चलने में भी दिक्कत आ रही थी पर जैसे ही सुना कि जापान से हासीगावा आये हैं, कर्पूरी जी पटना पहुंच गयीं और सभी को अपना आशीर्वाद दिया। कर्पूरी जी मिथिला पेंटिंग उकेरते समय भी प्राय: गीत गाती रहती थीं।

जापान से उनका विशेष लगाव था। कारण यह है कि सन् 1988 में पहली बार वह जापान में स्थापित होने वाले हासीगावा मिथिला म्यूजियम का उद्घाटन करने बतौर मुख्य अतिथि अपनी  बड़ी दीदी महासुंदरी देवी के साथ गयी थीं और वहां कई महीने तक समय व्यतीत किया था। उनकी बनायी गयी उस समय की मिथिला पेंटिंग अब भी जापान के इस म्यूजिम की आन-बान-शान हैं। कर्पूरी देवी नौ बार जापान जा चुकीं हैं। अमेरिका, फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों में जाकर मिथिला पेंटिंग को लोकप्रिय बनाया और इनके प्रशंसक आज  देश-दुनियाभर में हैं।

कर्पूरी देवी
देवी को नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट सहित कई अन्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।वर्ष 1980-81 में बिहार सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिल्पी का राज्य पुरस्कार इन्हें प्रदान किया गया था। 1983 में बिहार सरकार ने उन्हें श्रेष्ठ शिल्पी के रूप में ताम्रपत्र और मेडल से नवाजा
था। साल 1986 में भारत सरकार से उन्होंने मेरिट प्रमाण पत्र पाया।इसके अलावा भी उन्हें दर्जनों पुरस्कार, सम्मान पत्र आदि हासिल थे।

बिहार समेत आज पूरा विश्व, कर्पूरी देवी के निधन से शोक में डूबा है। हम ईश्वर से प्रार्थना करतें हैं उनके परिवार को इस दुख के घड़ी से गुजरने की शक्ति मिले।


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