“हम बिहारियों के DNA में जुझारूपन होता है” : पंकज त्रिपाठी

pankaj-tripathi-in-movie-anaarkali-of-aarah-1488022283-1672845871 आनेवाली फिल्म, अनारकली ऑफ़ आरा के सिलसिले में इस फिल्म के रंगीला यानि पंकज त्रिपाठी से बात करने का मौका मिला। हिंदी सिनेमा में अपनी खास और महत्वपूर्ण पहचान बना चुके पंकज त्रिपाठी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बिहार के गोपालगंज से आये त्रिपाठी जी मुम्बई के लिए अपनी पूरी गृहस्थी और एक किताबों से भरा बक्सा लिए निकले थे। वो सफर आज इस पड़ाव पर आया है कि इस साल आपकी 11 फ़िल्में रिलीज़ होगी। ये आंकड़ा पंकज त्रिपाठी की सफलता की गवाही है। इस ऊंचाई पर पहुँचने के बावजूद आपने अपनी जड़ों को नजरअंदाज नहीं किया है। अमूमन ये माना जाता है कि कोई भी सफल इंसान और खास कर के फ़िल्म अभिनेताओं के व्यक्तिव में अहंकार आ जाता है। लेकिन पंकज त्रिपाठी के मामले में ये धारणा बिल्कुल ही गलत साबित होती है। जिस गर्मजोशी और लगाव से आप लोगों से, भले ही वो आपसे शख्सियत में छोटे ही क्यों न हो, रूबरू होते हैं वो दिल जीत लेने वाला होता है। हमें मौका मिला पंकज त्रिपाठी से कुछ सवाल जवाब करने का तो उसी का कुछ हिस्सा आपके लिए ले कर आये हैं।

शुरुआत करते हैं आनेवाली फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा से, इस फिल्म को करने की क्या वजह रही?

पंकज त्रिपाठी : अनारकली ऑफ़ आरा की स्क्रिप्ट जब मैंने पढ़ी तो मैं काफी प्रभावित हुआ। इसकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी तो सबसे बड़ी वजह यही होती है किसी भी कलाकार के लिए। जैसा कि आप जानते है, इस फिल्म में मेरे साथ संजय मिश्रा भी हैं जो कि इसमें नेगेटिव किरदार की भूमिका कर रहे हैं। तो उन्होंने भी मुझसे कहा था कि मैं ये रंगीला का किरदार करूँ। इसके अलावा अविनाश दास से मेरी मित्रता पटना के ही दिनों से रही है। अनारकली ऑफ़ आरा उनकी लिखी और निर्देशित की हुई पहली फिल्म है और यही वजह मेरे लिए काफी थी इस फिल्म को करने की।

अनारकली ऑफ़ आरा में अपने किरदार रंगीला के बारे में बताएं। इस किरदार को किस तरह से की थी?

पंकज त्रिपाठी : रंगीला का किरदार गाँव, कस्बों  छोटे शहरों में होने वाले आर्केस्ट्रा  संचालक का है। उसका काम स्टेज परफ़ॉर्मर के स्टेज पर आने से माहौल बनाने और लोगों को आकर्षित किये रखने का होता है। अगर इसके किरदार की बात करें तो रंगीला का व्यक्तित्व स्टेज पर काफी छिछला और सतही होता है। लेकिन मेरी हमेशा से ये कोशिश रही है कि किसी भी किरदार के अलग अलग पहलुओं को भी दिखा सकूँ। इस से किरदार में सच्चाई और वास्तविकता आती है। तो रंगीला के किरदार के साथ भी ऐसा ही कुछ करने की कोशिश रही है। इसलिए ऑफ स्टेज रंगीला का व्यक्तित्व थोड़ा बदलता है।
जहाँ तक इस किरदार के लिए तैयारी की बात है तो चूँकि अनारकली ऑफ़ आरा का विषय ही मनोरंजन के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है  तो जाहिर सी बात है की  किरदार भी उसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। और हम भी इसी क्षेत्र से हैं, हमारा भी पेशा मनोरंजन का है तो इसकी कोई खास तैयारी करने की ज़रूरत नहीं पड़ी।  किसी अभिनेता को इस किरदार के लिए तैयारी करने का मतलब मछली को तैरने की तैयारी करना होता।

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अविनाश दास और आपकी मित्रता के बारे में बताएं। उनके निर्देशन में अनारकली ऑफ़ आरा में काम करने का अनुभव कैसा रहा ?

पंकज त्रिपाठी : जब मैं पटना में थिएटर किया करता था तब अविनाश दास प्रभात खबर में हुआ करते थे। यह एक ऐसे पत्रकार थे जो अपने अखबार में रंगमंच की गतिविधियों को जगह देते थे, नाटकों के बारे में छापते थे। हमारी दोस्ती वहीँ से शुरू हुई और अब दोस्त की फिल्म में काम कर रहे हैं। काम करने के अनुभव की बात करूँ तो एक मित्र के साथ काम करना हमेशा ही एक अच्छा अनुभव होता है। बतौर निर्देशक इन्होंने काफी आज़ादी दी काम करने की। चूँकि ये अविनाश की पहली फिल्म है और ये पत्रकारिता से फिल्म में अब आएं हैं तो इस फिल्म के बनने में हम सब भी involved रहे। कई सारी चीजें सेट पर सीन करने के दौरान improvise भी हुई। जैसे कि आपने एक सीन अनारकली ऑफ़ आरा के ट्रेलर में भी देखा होगा जिसमे रंगीला अनारकली को स्टेज पर introduce कराता है। शुरू में ये सीन ऐसा नहीं था। उस में अनारकली को पहले से ही स्टेज पर मौजूद रहना था। ये मेरा ही सुझाव था कि मेरे किरदार को अनारकली का बाकायदा introduction कर के स्टेज पर बुलाना चाहिए, जैसा कि इस तरह के आर्केस्ट्रा में अमूमन होता है। तो फिर ये सीन इस तरह फिल्माया गया।

आपके द्वारा निभाए गए अधिकतर किरदार उत्तर भारत के ही होते हैं। तो क्या आपको उत्तर भारतीय किरदारों में ही typecast हो जाने की चिंता होती है ?

पंकज त्रिपाठी : हाँ, ये बात सही है की मुझे मिलने वाले अधिकतर किरदार नार्थ इंडिया के ही होते हैं। लेकिन चूँकि मैं खुद उत्तर भारत से हूँ तो मैं खुद को इन किरदारों में ज़्यादा बेहतर  तरीके से ढाल सकता हूँ। अगर मैं किसी पंजाबी का या किसी NRI का किरदार करूँ तो शायद उस किरदार के हर पहलु के साथ न्याय नहीं कर पाउँगा। और दूसरी बात ये कि उत्तर भारत में करोड़ो लोग बसते हैं यानी कि करोड़ों तरह के किरदार हैं तो ऐसा नहीं है कि उत्तर भारत के किरदारों में variation की कोई कमी है। जैसे कि “निल बट्टे सन्नाटा” का प्रिंसिपल श्रीवास्तव का किरदार ले लीजिये तो वो मेरे तब तक के निभाए सारे किरदारों में से काफी अलग था। इसलिए एक actor के तौर पर मेरे लिए ये कोई चिंता की बात नहीं है।

अब घर की बात करते हैं तो बिहार के बारे में कोई एक ऐसी क्या चीज़ है जो आपको कही और नहीं दिखी या महसूस हुई?

पंकज त्रिपाठी : बिहार के बारे में जो मैं महसूस करता हूँ उसे शब्दों में बताना तो बड़ा मुश्किल है। दरअसल मेरे लिये बिहारी होना एक अनुभूति है। बिहारी होने के नाते मैं खुद को बिहार के बाकी लोगों से काफ़ी जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ। मैं ये बात पूरे दिल से बोल रहा हूँ कि जब भी मैं बिहार से किसी को कुछ अच्छा करता देखता हूँ, किसी को सफल होता देखता हूँ  तो मुझे व्यक्तिगत तौर पे भी काफी गर्व होता है । रही बिहार के बारे में एक खास बात बताने की तो वो है इसके हार न मानने की ज़िद। हमारे यहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, बिहार के बाहर के लोग हमारे बारे में गलत स्टीरियोटाइप पाले हुए हैं, हमारी भाषा को, बोलने के तरीके को गलत तरीके से देखते हैं। फिर भी बिहार के लोग इन तमाम विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए हर क्षेत्र में सफल होते आ रहे हैं। ये जुझारूपन एक तरह से हम बिहारियों के DNA में आ गया है।

बिहार की भाषा और हमारे बोलने के तरीके को बॉलीवुड में हमेशा से कॉमेडी के लहजे में इस्तेमाल किया जाता रहा है तो इस बारे में आपके क्या विचार हैं ?

पंकज त्रिपाठी : ये एक तरह का stereotypical treatment  तो रहा है बॉलीवुड में हमारे बोल-चाल के तरीके को ले कर, इस से बिलकुल इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन अब ये स्टीरियोटाइप टूट रहा है। मनोज बाजपेयी, संजय मिश्रा जैसे अभिनेताओं को काफी क्रेडिट जाता है इस बात को ले कर। अलग अलग तरह के रोल लिखे जा रहे हैं। हमारे यहां के किरदारों को और परिपक्व तरीके से पेश किया जा रहा है। अनारकली ऑफ़ आरा भी इसी कड़ी में एक और कोशिश है। ये भी एक बिलकुल अलग और नयी कहानी है।

अनारकली ऑफ़ आरा के cast-member 90% बिहारी हैं तो सेट पर माहौल कैसा होता था ? 

पंकज त्रिपाठी : एकदम घर जैसा ही माहौल होता था सेट पर। सब अपने ही लोग लगते थे। फिल्म की शूटिंग अमरोहा (दिल्ली के पास एक  छोटा शहर ) में हुई है लेकिन सेट पर घर जैसा ही माहौल था। लिट्टी-चोखा भी बना था सेट पर। सब काम करने वालों में कोई ज़्यादा सर-वर बोलने की formality नहीं थी। काफी दोस्ताना माहौल रहा। हमारे प्रोड्यूसर संदीप कपूर ने भी हमारे काम करने में काफी आज़ादी दी हमें।

17453726_1556499437717575_1967988943_oइस साल आने वाली आपकी फिल्मों में आपके कौन से किरदार आपके दिल के काफी करीब हैं ? 

पंकज त्रिपाठी : पहला तो यही है। अनारकली ऑफ़ आरा बहुत खास फिल्म है मेरे लिए और ये मेरे दिल के काफी करीब है। इसके अलावा कई अच्छी फ़िल्में आ रही है मेरी इस साल। “न्यूटन” आने वाली है जो कि हाल ही में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गयी और काफी सराही गयी। इसके अलावा “गुड़गांव” भी काफी खास है मेरे लिए। “बरेली की बर्फी” से भी काफी उम्मीदें हैं।

 

आपके चाहने वालों की ख्वाहिश आपको मुख्य भूमिकाओं में देखना चाहते हैं तो ये कब होगा ?

पंकज त्रिपाठी : मेरी खुद की ख्वाहिश है कि मैं खुद को मुख्य भूमिका में देखूं। ये ख्वाहिश बड़ी जल्दी ही पूरी होगी। बल्कि इसी साल पूरी होगी। इस साल आने वाली फिल्म में मेरी किरदार मुख्य किरदार है।

इस साल आपकी ग्यारह फ़िल्में आ रही है और ये आपकी सफलता की गवाही देती है। तो अब इस मुकाम पर पहुँचने के बाद कोई अंतर देखते हैं ? 

पंकज त्रिपाठी : मुझमे तो कोई अंतर नहीं आया, अभी भी वही दाल चावल खाता हूँ जो पहले खाता था।  हाँ अब लोगों ने मुझे seriously लेना शुरू कर दिया है। फिल्म बनाने वाले भी मुझे गंभीरता से ले रहे हैं। शुरुआती दिनों में ये होता था कि सेट पर मुझे मेरे किरदार के नाम से ही बुलाया जाता था क्योंकि नाम से परिचित नहीं होते थे लोग। अब नाम से बुलाया जाता है। दर्शक भी अब मुझे और मेरे काम को नोटिस करने लगे हैं अब।

अपना कीमती वक़्त हमें देने के लिए पंकज त्रिपाठी का बहुत बहुत शुक्रिया। 24 मार्च को रिलीज़ होने वाली अनारकली ऑफ़ आरा के लिए और इस साल आने वाली बाकी फिल्मों के लिए भी हम सब की तरफ से शुभकामनायें!

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Quote of the day:“There is scarcely any passion without struggle.” 
― Albert Camus, The Myth of Sisyphus and Other Essays