HomeBiharहर बार पहली बार सा है | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar, एक कविता “दुआएँ जीत जाती हैं उसकी, मेरा ग़म हर बार हार जाता है, वो एक शक्स उदासियों को इस कदर तार-तार करता है|” ‘एक कविता बिहार से’ को आज एक महीने हो गये, मतलब बिहार के कोने-कोने से, नई-पुरानी 15 कवितायें, 15 कड़ियों में आ चुकी हैं| 1 जुलाई को हमने ये सिलसिला शुरू किया था| आज 31 जुलाई है| आपके सहयोग से आज हम इस सिलसिले को एक महीने तक सफलतापूर्वक लाने में सफल रहे हैं| पूरी टीम की तरफ से तह-ए-दिल से शुक्रिया! आभार! इसी साथ की दरकार आगे भी रहेगी| इस खास मौके पर टीम और पाठकों की ख्वाहिश को मद्देनजर रखते हुए तय किया गया है, महीने की एक कविता ‘मेरी कलम’ से भी होनी चाहिए| महीने की आखिरी कविता अब मेरी होगी| मैं कौन हूँ? मैं हूँ पटनाबीट्स पर आ रहे कविताओं के कार्यक्रम ‘एक कविता बिहार से’ की संचालिका, प्रस्तुतकर्ता, आपकी होस्ट, ‘नेहा नूपुर’| कवितायें, कहानियाँ और ब्लॉग्स लिखने की शौक़ीन हूँ| भावनाएँ जिस विधा में व्यक्त होना चाहती हैं, उसी में लिखती हूँ| कवितायें सुनना-सुनाना-लिखना-पढ़ना बेहद पसंद है, अर्थात् कविता दिल के बेहद करीब रही है| कविताओं-गजलों से सजी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, ‘जीवन के नूपुर- वो हँसी सुरीले सपनों पर’| इस तरह युवा कवि की पहचान बनी और उसी सिलसिले में आपसे रूबरू होने का भी मौका मिला| आज पटनाबीट्स पर ‘एक कविता बिहार से’ में प्रस्तुत है ‘नेहा नूपुर’ की प्रकाशित पुस्तक ‘जीवन के नूपुर’ से एक कविता| भारी भावनाओं के साथ हल्के मिजाज की कविता- ‘हर बार पहली बार सा है’| हर बार पहली बार सा है हर बार पहली बार सा है, ये प्यार सुबह के अख़बार सा है| आता है, लुभाता है, जाता है, रुलाता है, इश्क का बुखार तो इतवार सा है, हर बार पहली बार सा है| अमीरी का मारा, गरीबी में हारा, मुहब्बत भी अंबानी के व्यापार सा है, हर बार पहली बार सा है| इशारों में घुले बोध, अल्फ़ाज़ों के अवरोध, ख़ालिश गज़ल के आसार सा है, हर बार पहली बार सा है| उमर की लुका-छिपी, मिलन में चुप्पा-चुप्पी, ये भूत दिलों पे सवार सा है, हर बार पहली बार सा है| मात से बेख़बर, रात में बेसबर, जुल्मी! जीतने वाली सरकार सा है, हर बार पहली बार सा है| गंगाजल सा पावन, गुलाबजल सा मनभावन, प्रेम का चरित्र भी गुल-ए-गुलज़ार सा है, हर बार पहली बार सा है|