HomeBiharभूल गये क्यों साथी मेरे | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar स्व० राम बिलास मिश्र ‘विमल’ जी का जन्म समस्तीपुर के तिसवारा में हुआ| ये सच्चे समाजवादी नेता थे| बिहार सरकार के भवन-निर्माण विभाग में मंत्री भी रहे| लेकिन हमारे सामने उनकी एक और छवि प्रस्तुत हुई है, जो एक कवि की है, एक रचनाकार की है| जनश्रुति के अनुसार, यह कविता उन्होंने जीवन के आखिरी क्षणों में लिखी थी| ‘विमल’ जी के ही ग्रामनिवासी श्री अमित शाण्डिल्य जी के सौजन्य से “एक कविता बिहार से” की इस कड़ी में आईये पढ़ते हैं- “जीवनसाथी”| जीवनसाथी जनम-जनम के नाते-वादे भूल गये क्यों साथी मेरे || प्राण अकेला, घर उजड़ा है, तुम क्या जानो क्या गुजरा है, घर सूना अधियाली रजनी मानस पट पर सपने तेरे भूल गये क्यों साथी मेरे || अभिलाषा थी चिर दर्शन की, पर दुर्लभ छवि नश्वर तन की, सात जनम के जीवनसाथी, बने पराये-अपने मेरे भूल गये क्यों साथी मेरे || गंगा कृष्णा सरयू तट पर, ब्रह्मपुत्र काबेरी तट पर, नदी नर्मदा-गौतमी शिप्ता, दामोदर तट प्रिय को हेरे भूल गये क्यों साथी मेरे || बंगाल-हिन्द अरब सागर तट, जल क्रीडा-पुरी-पावन तट, भेंट द्वारिका-सेतु बाँध में, खोज रहा मन साँझ-सवेरे भूल गये क्यों साथी मेरे || कन्याकुमारी-सागर-संगम, गंगा सागर-तीर कोवलम, चौपाटी-जुहू-पंजिम तट, बुला रहे हैं लहर थपेड़े भूल गये क्यों साथी मेरे|| शिखर हिमालय अमरनाथ, वैष्णो माँ-केदारनाथ, नैनी-दून-मसूरी पथ पर, राह देखते घोड़े तेरे भूल गये क्यों साथी मेरे||