आनन्द सबका समान भइल रे | एक कविता बिहार से

किसी भी प्रान्त से हों हम, किसी भी भाषा में बाते करते हों, कुछ भी पहनते हों, किसी भी पेशे से जुड़े हों, दिल से हमसब हिंदुस्तानी हैं| कल 15 अगस्त है| हमारी आजादी का दिन| स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए हम झंडा फहराएँगे| लहराता झंडा हमे गर्व से भर देता है| यह याद दिलाता है, हमारे देश का गौरव इन्हीं तीन रंगों से बना हुआ है|
इसी धारणा को और प्रगाढ़ करती, भारतीयता के गौरव का बखान करती यह कविता लिखी है भोजपुरी के महान कवि, छपरा के रहने वाले आचार्य महेंद्र शास्त्री जी ने| इनका जन्म 16 अप्रैल 1901 ई० में हुआ, जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था| इन्होंने देश को गुलामी से लड़कर, आजाद होते देखा, महसूस किया| उस जोश के साक्षी बने, उस गौरव, अभिमान के साक्षी बने जिसको याद कर के हम आज ये उत्सव मनाते हैं|
पटनाबीट्स पर ‘एक कविता बिहार से’ में आज महेंद्र शास्त्री जी की एक भोजपुरी कविता, जिसे पढ़ कर वही आनंद और वही अभिमान जागृत होता है- ‘उत्थान’|

उत्थान

आज आकाश में भी बथान भइल रे,
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।

रोज विज्ञान के ज्ञान बढ़ते गइल,
लोग ऊँचा-से-ऊँचा पर चढ़ते गइल,
आज सगरे आ सबकर उथान भइल रे-
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।

जबले हमनी के मनवाँ छोटा रहल,
तबले सब लो के मनवाँ खोटा रहल,
आज हमनी के मनवाँ महान भइल रे-
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।

फेर ए देस के मॉथ ऊँचा भइल,
फेर ई देस नीमन समूचा भइल,
बूढ़ भारत अब सब से जवान भइल रे-
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।

मन में सेवा के हमरा अथाह चाह बा,
हमरा पुरुखन के ईहे पुरान राह बा,
आज हमनी का ओही के ध्यान भइल रे-
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।

आज सबसे बड़ा सब किसान भइल रे,
आज सबका से इहे प्रधान भइल रे,
किन्तु आनन्द सबका समान भइल रे|

मन के अरमान अपना पूरा भइल,
आज बापू के सपना पूरा भइल,
आज हमनी के छाती उतान भइल रे-
चान सूरज पर आपन मकान भइले रे।