HomeBiharकविता भक्ति की लिखूँ या श्रृंगार की | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar, एक कविता बिहार से Share Pin भारत के राष्ट्रकवि होने का दर्ज़ा जिन्हें प्राप्त है, अर्थात् श्री रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्मदिन 23 सितम्बर को है| 1908 ई० में जन्में श्री दिनकर को याद करते हुए पटनाबीट्स की एक कविता बिहार से में आज शामिल हो रही है उनकी लिखी एक बेहद दुर्लभ कविता| जी हाँ! 1970-71 ई० में एक कॉलेज पत्रिका में छपी रामधारी सिंह दिनकर जी की ये कविता कॉलेज के छात्र-छात्राओं या शायद अगली पीढ़ी को ध्यान में रख कर लिखी गई होगी| यह कविता एक कवि का दर्द बयाँ करती है, साथ ही ये एक संदेश भी है उनकी तरफ से हम सबके लिए| तो पेश है आज की ‘एक कविता बिहार से’| “हम रोमांटिक थे, हवा में महल बनाया करते थे,चाँद के पास हमने नीड़ बसाया था,मन बहलाने को हम उसमें आया-जाया करते थे| लेकिन तुम हमसे ज्यादा होशियार होना,कविता पढ़ने में समय मत खोना,पढ़ना ही है तो बजट के आँकड़े पढ़ो,वे ज्यादा सच्चे और ठोस होते हैं| सांख्यिकी बढ़ती पर है,दर्शन की शिखा मंद हुई जाती है,हवा में बीज बोने वाले हँसी के पात्र हैं,कवि और रहस्यवादी होने की राह बंद हुई जाती है| कविता भक्ति की लिखूँ या श्रृंगार की,सविता एक ही है, जो शब्दों में जलता है|” दिनकर जी की दो और कविताएँ ‘एक कविता बिहार से‘ की शोभा बढ़ा चुकी हैं, उन्हें यहाँ पढ़ें- 1:रश्मिरथी2: ध्वजा वंदना Share Tweet Share Pin Comments comments