HomeBiharझंडा की बोलै छै | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar, एक कविता बिहार से 15 अगस्त को कितने प्रेम से झंडे फहराए जाते हैं, संकल्प लिए जाते हैं| लेकिन उसके बाद क्या? क्या हम उस संकल्प को पूरा करने की कोशिश करते हैं? क्या समझते हैं कि झंडा क्या कहना चाहता है? आज की कविता ‘अंगिका’ में है, ‘नन्द किशोर शर्मा’ जी ने लिखी है| इनका जन्म 1 अप्रैल 1955 ई० को हुआ और जन्म-स्थान खगड़िया का राजाजान गाँव है| पटनाबीट्स के ‘एक कविता बिहार से’ की कड़ी में आज की कविता पढ़ते हैं और सोचते हैं, आखिर ‘झंडा की बोलै छै’? झंडा की बोलै छै रे नूँनूँ देखीं त झंडा की बोलै छै? चारो दिस ताकै छै झूमैं छै डोलै छै रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै? सैंतालिस के पहले पछिया बियार बहै, शेर के बगिच्चा में गीदर सियर रहै, गोस्सा पुरनका छै देह तनि झोलै छै, रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै? झंडा कै हाबा, गुदगुद्दी लगावै छै, छिटकै छै पोर-पोर नाचें इठलावै छै, सरंग में मस्त-मस्त तीन रंग घोलै छै, रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै? गाँधी के आँधी सें खम्भा उखड़लै रे, आजादी के दीया घॉर-घॉर जरलै रे, हँस्सी ठहक्का छै बंद ठोर खोलै छै, रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै? चोर औ’ सिपाही में रात-दिन सल्हा भेल, काश्मीर-आसाम लालकिला हल्ला भेल, आस्तीन के साँप मूँहें टटोलै छै, रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै? रारे के आजादी ओकरे बहार भेल दीप बुझल सज्जनता सौंसे अन्हार भेल बाहर में नाम बहुत घॉर हम्मर डोलै छै रे नूँनूँ देखीं ते झंडा की बोलै छै?