HomeBiharऔरतों की हालत पर सवाल उठाती कविता ‘हमारे समाज से’ | एक कविता बिहार से Puja Kaushik Bihar, एक कविता बिहार से पटना के आयुष सौरभ को लिखने-पढ़ने का शौक है एवं बी.एन. कॉलेज के छात्र हैं। आजकल के स्मार्टफोन जेनेरशन से आने के बाद भी ‘अबोध बालक’ के तख़ल्लुस में लिखने वाले आयुष, कविता की पुरानी शैली को जीवित रखे हुए है। इनकी कवितायों में आपको संदेश, प्रेरणा और आत्मबोध का मिलाप दिखेगा। प्रस्तुत कविता में आयुष समाज से कुछ अहम् सवाल पूछ रहे हैं एवं महिलाओं से जुडी समाज की कुरीतियों पर अफ़सोस जाता रहे हैं। इस कविता के माध्यम से आयुष सौरभ महिलाओं की स्थिति एवं ज़रूरतों से हमें रूबरू करवा रहे हैं एवं अपना आक्रोश ज़ाहिर कर रहे हैं। Women’s History Month में ‘एक कविता बिहार से’ में आज हम लेकर आये हैं आयुष सौरभ की कविता ‘हमारे समाज से’… हाँ, दिक्कतें हैं हमें हमारे इस समाज से और हमारे समाज को हमारे ही आवाज से कि बेटियां बंद रहेंगी चारदीवारी में निकलेंगी भी तो बंद बुर्के या साड़ी में धर्म की आड़ में छिपे है कुकर्मी कि पर्दा न उठ जाए राज से हाँ, दिक्कतें हैं हमें हमारे इस समाज से कि दहेज़ एक रीती है चंद मूर्खों की बनाई ये नीति है बेटियां मर रहीं हैं दहेज उत्पीड़ित हो हर घर की यही आपबीती है लक्ष्मी-काली-दुर्गा बस नाम हैं यहाँ नारी मृत्यु घाट में जीती हैं और दबी रह जाती हैं उनकी चीखें मर्दों के निष्ठुर आवाज से हाँ, दिक्कतें हैं हमें हमारे इस समाज से कि जन्म बेटी का आज भी एक अभिशाप है यहाँ छोटी सोच से लिप्त नापाक पंच और खाप हैं रजोधर्म आज भी माना जाता महिलाओं के लिए एक पाप है होंगी कब नारी शक्ति सुरक्षित यहाँ आज भी बस एक ख्वाब है बुराइयों से लिपटी आज भी चली आ रही चंद रीती रिवाज हैं और हमें दिक्कते हैं उन्हीं रीती रिवाज से हाँ, दिक्कतें हैं हमें हमारे इस समाज से Featured image from web. Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook, Instagram and Twitter and subscribe us on Youtube. Quote of the day: “In three words I can sum up everything I've learned about life: it goes on.” ― Robert Frost Also Watch: https://www.youtube.com/watch?v=ysyqnQi6s7A