यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है
सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है|
हर छोटे-बड़े मौके पर ‘जीवन’ का चित्र स्पष्ट दर्शाने हेतु इस्तेमाल की जानी वाली ये पंक्तियाँ क्या आपकी नज़र से भी गुजरी हैं? क्या आप इस कालजयी कृति के रचयिता के बारे में जानते हैं?
जीवन की सरल सच्चाई दर्शाती ये पंक्तियाँ साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, काव्य जगत की अनमोल विभूतियों में से एक आरसी प्रसाद सिंह जी की हैं| इनका जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एरौत गाँव में 19 अगस्त 1911 ई० को हुआ था| छायावाद के सुप्रसिद्ध कवि थे, मैथिली और हिंदी में लिखते थे| इनकी प्रकाशित रचनाओं से ज्यादा रचनाएँ अप्रकाशित रही हैं| 15 नवम्बर 1996 में ये दुनिया को अलविदा कह गये, ये कहते हुए कि-
“चलना है, केवल चलना है! जीवन चलता ही रहता है!
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है!”
ज्ञात हो, पटनाबीट्स ‘एक कविता बिहार से’ की कड़ी-दर-कड़ी हम बिहार से निकली देशप्रेम की कवितायें ला रहे हैं| इसी कड़ी में आज श्री आरसी प्रसाद सिंह जी की कविता शामिल हो रही है, जो बिहार में हिंदी टेक्स्ट बुक का भी हिस्सा रही है| अगर आपने भी पढ़ी हो तो आज की ये खास कविता हम हमारे-आपके बचपन को याद करते हुए सौपेंगे- ‘हमारा देश’|