दिनकर डूबता है तो उगता भी तो है हर रोज | एक कविता बिहार से

शुभकामना संदेश के साथ अपनी रचना हमें सौंपी है सुजाता प्रसाद जी ने| महिलाओं के साथ अच्छी बात यह होती है कि इनके दो-दो घर हो सकते हैं| इसी तर्ज़ पर श्रीमती सुजाता जी का भी मायका दरभंगा, बिहार में है और ससुराल बीरगंज, नेपाल में| दिल्ली में निवासित हैं और पेशे से शिक्षिका हैं| 15 सितम्बर 1973 ई० में जन्मीं सुजाता जी स्वतंत्र लेखन कर अपनी पहचान स्थापित कर रही हैं|
पटनाबीट्स के ‘एक कविता बिहार से’ में आज शामिल हो रही है कवयित्री सुजाता प्रसाद जी की कविता- ‘उम्मीदों के पायदान’|

उम्मीदों के पायदान

किसके हाथ आया है हर्ष
किए बिना कोई संघर्ष,
गर्दिश के ये पल भी जाएंगे
सुखद छाया के वृक्ष भी लहराएंगे।
सफ़र की हर एक चुनौती
श्याम सियाही होती है,
पल पल साथ चलती कठिनाई
मेहनत की रायशुमारी होती है।

तू सहमता क्यों है, यह सच है
वक्त ठहरता कब है?
बुरा दौर भी खिसकेगा
लिखित यही कहानी होती है।।

हर सपने में छुपी
एक सच्चाई होती है,
उम्मीदों के पायदानों की
नित नई चढ़ाई होती है।
दिनकर डूबता है तो
उगता भी तो है हर रोज,
गिर-गिर कर उठने वालों की
सुबह सुहानी होती है।।