इश्क़े के सदमे उठाने नहीं आसाँ ‘हसरत’ | एक कविता बिहार से

सीना तो ढूँढ लिया मुत्तसिल अपना हम ने,
नहीं मालूम दिया किस को दिल अपना हम ने|

दर ग़रीबी न था कुछ और मयस्सर ‘हसरत’,
इश्‍क़ की नज्र किया दीन ओ दिल अपना हम ने|

“दौर कोई भी हो, इश्क़ की तासीर वही होती है”, नज्में इस बात का पुख्ता सबूत है| पुराने शायरों-कवियों ने जिस शिद्दत से लफ़्ज़ों को पिरोया है, वो ग़ज़ल का भाव और बढ़ा देते हैं| इसी सिलसिले में आज के शायर का ज़िक्र भी आता है| इनकी रचनाएँ यथार्थ के करीब हैं, तभी तो ये तब से लेकर अब तक उसी भाव से पढ़े जाते हैं| बात पुराने शायरों में से एक ‘हसरत’ अज़ीमाबादी की हो रही है| ये 1885 में बिहार के अज़ीमाबाद में जन्मे|

पटनाबीट्स के ‘एक कविता बिहार से’ की आज की प्रस्तुति में शामिल हो रही है ‘हसरत’ अज़ीमाबादी की ग़ज़ल- ‘कब तलक हमको न आवेगा नज़र देखें तो’|

कब तलक हमको न आवेगा नज़र देखें तो

 

कब तलक हमको न आवेगा नज़र देखें तो,
कैसे तरसाता है ये दीदा-ए-तर देखें तो|

इश्‍क़ में उसके कि गुज़रे हैं सर ओ जान से हम,
अपनी किस तौर से होती है गुज़र देखें तो|

कर के वो जौर ओ सितम हँस के लगा ये कहने,
आह ओ अफ़्गाँ का तिरी हम भी असर देखें तो|

सब्र हो सकता है कब हम से वले मसलेहतन,
आज़माइश दिल-ए-बेताब की कर देखें तो|

ढब चढ़े हो मिरे तुम आज ही तो मुद्दत बाद,
जाएँगे आप कहाँ और किधर देखें तो|

किस दिलेरी से करे है तू फ़िदा जान उस पर,
दिल-ए-जाँ-बाज़ तिरा हम भी हुनर देखें तो|

क्या मजाल अपनी जो कुछ कह सकें हम तुझ से और,
तुझ को भर कर नज़र ऐ शोख़ पिसर देखें तो|

हो चलीं ख़ीरा तो अख़तर-शुमरी से आँखे,
शब हमारी भी कभी होगी सहर देखें तो|

इश्‍क़ के सदमे उठाने नहीं आसाँ ‘हसरत’,
कर सके कोई हमारा सा जिगर देखें तो|

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Quote of the day: “You've gotta dance like there's nobody watching, Love like you'll never be hurt, Sing like there's nobody listening,And live like it's heaven on earth.” 
― William W. Purkey