HomeBiharछतों पर लड़कियाँ | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar, एक कविता बिहार से अलोक धन्वा, हिंदी काव्य जगत में एक और बहुचर्चित और मीडिया में विवादित चेहरा| बिहार के मुंगेर जिले के बेलबिहमा में 1948 ई० में जन्में श्री धन्वा जी क्रांतिकारी कवितायेँ लिखने के लिए जाने जाते रहे हैं| सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलनों से जुड़ जाने के बाद 14 वर्षों तक लेखन से दूर भी रहे| लेकिन जब वापस आये, हिंदी ने पुनः उसी प्रेम से गले लगाया| “एक कविता बिहार से” में आज PatnaBeats की तरफ से अलोक धन्वा की 1992 में लिखी हुई ऐसी ही एक क्रांतिकारी कविता- ‘छतों पर लड़कियाँ’| छतों पर लड़कियाँ अब भी छतों पर आती हैं लड़कियाँ मेरी ज़िंदगी पर पड़ती हैं उनकी परछाइयाँ। गो कि लड़कियाँ आयी हैं उन लड़कों के लिए जो नीचे गलियों में ताश खेल रहे हैं नाले के ऊपर बनी सीढियों पर और फ़ुटपाथ के खुले चायख़ानों की बेंचों पर चाय पी रहे हैं उस लड़के को घेर कर जो बहुत मीठा बजा रहा है माउथ ऑर्गन पर आवारा और श्री 420 की अमर धुनें। पत्रिकाओं की एक ज़मीन पर बिछी दुकान सामने खड़े-खड़े कुछ नौजवान अख़बार भी पढ़ रहे हैं। उनमें सभी छात्र नहीं हैं कुछ बेरोज़गार हैं और कुछ नौकरीपेशा, और कुछ लफंगे भी लेकिन उन सभी के ख़ून में इंतज़ार है एक लड़की का ! उन्हें उम्मीद है उन घरों और उन छतों से किसी शाम प्यार आयेगा !