HomeBiharबचपन के दिन भले थे कितने | एक कविता बिहार से Neha Nupur Bihar, एक कविता बिहार से रविन्द्र प्रसाद जी ने पटनाबीट्स से अपनी एक कविता साझा की है| कविता का शीर्षक हम सबको प्रिय है| इंसान कितना भी आगे निकल जाये एक जो चीज़ हमेशा उसे अपनी ओर खींचती है वो है ‘बचपन’| ये शायद ऐसी उम्र है जो जीवन भर साथ निभाती है| वो शरारतें और खेल-खेल में रूठना-मनाना, सब याद आएगा इस कविता के साथ और शायद कवि का यही मकसद भी रहा हो| एक कविता बिहार से के साथ आज आप भी तलाश लीजिये दिल का वो कोना जो अब भी जीना चाहता है उन्हीं लम्हों को, बार-बार| चलिए अपने ‘बचपन’ की एक सैर करते हैं| पेश है पाठक रविन्द्र प्रसाद जी की प्यारी सी कविता- ‘बचपन’| बचपन बचपन के दिन भले थे कितने, सोच सकें हम चाहे जितने, बचपन के दिन भले थे कितने| याद है हमको वो झूमती रातें, राजा-रानी, परियों की बातें, ख्वाबों के हम महल में रहते, परी के संग परीलोक भी जाते| वो दिन आज बने हैं सपने, बचपन के दिन भले थे कितने| कंचा-गिल्ली प्रिय थे हमको, लट्टू भी कुछ कम नहीं भाते, धुप में सारा दिवस गंवाते, झूमते-गाते, पतंग उड़ाते| वो दिन आज रहे न अपने, बचपन के दिन भले थे कितने| खेल-खेल में शादी रचाते, झूमते-गाते बारात लाते, सखी कोई दुल्हन बन जाती, सखा हमें सेहरा पहनाते| वो दिन बीत गए अब अपने, बचपन के दिन भले थे कितने| बचपन के दिन भले थे कितने सोच सकें हम चाहे जितने, बचपन के दिन भले थे कितने।।