ऐश्वर्य राज का ताल्लुक़ बिहार के भागलपुर शहर से है। शुरूआती पढ़ाई बिहार से करने के बाद, ऐश्वर्य दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से दर्शनशास्त्र में स्नातक कर रहीं हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर कई वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में अपना परचम लहरा चुकी हैं और कहती हैं कि इनके लिए लिखना थोपी हुई आइडेंटिटी पर सवाल करना है। ऐश्वर्य के मुताबिक़ जीवन और साहित्य को बांधकर शब्दों में डालना बेईमानी है। ऐश्वर्य जैसी युवा कवित्रियाँ वक़्त वक़्त पर साहित्य जगत को बिहार से आने वाली धमक महसूस कराती रहती हैं। इनकी कविताओं में एक अलग किस्म का दर्शन देखने को मिलता है। कहीं जग से बैराग का भाव दिखता है तो कहीं प्यार के अनछुए पहलुओं पर ऐश्वर्य एक स्त्री की दृष्टि से प्रकाश डालती हैं।
तो ‘एक कविता बिहार से‘ में आज हम पेश कर रहे हैं, ख़ुद को ‘ख़ामोश कोलाहल’ कहने वाली ऐश्वर्य राज की यह कविता:
क्योंकि तुम रचनाकार हो,
तुम्हारी रचनाएँ मांगती हैं
जिम्मेदारियों का बोध,
हालांकि,
तुम कुछ भी रच सकते हो,
सावन के झूलों का विरह गीत,
भंडार घर की खिड़की पर चलतीं
कतारबद्ध चींटियों द्वारा गुनगुनाया जाने वाला आंनद गान,
फटते ओज़ोन परत की चीख़-गुहार,
या फिर रमज़ान के शामों की रौनक़,
फिर भी,
कितना सही है योनियों को फूल लिखकर,
गाड़ देना किसी बाग के गमले में,
युद्ध को मर्दांगी
युद्ध-भूमियों को कर्तव्य भूमि लिखना
वीर रस की कविताएं लिखकर उन्हें ठूँस देना
विधवाओं और दूध मुंहे बच्चों के कंठों में ।
किसी भी रचना में,
बजाय शब्दों को जोरपूर्वक आशावादी बनाने के,
उन्हें दे देनी चाहिए साँस लेने की जगह
आज़ादी आपस में मिलने-लड़ने की,
इसलिए,
सबसे बड़ा ढोंगी है वह रचनाकार,
जिसकी रचनाओं में दुःख का उल्लेख नहीं होता ।
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Quote of the day:"Who looks outside, dreams; who looks inside, awakes. " ― Carl Jung
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