40 साल से हर मैच का स्कोरकार्ड बनाता बिहार का ये शख़्स

मुकुंद प्रसाद सिंह

भारत क्रिकेट के दीवानों का देश कहा जाता है. इस दीवानगी के भी कई रंग हैं. और कुछ को इससे पहचान और सम्मान भी मिलता है.

क्रिकेट के एक ऐसे ही दीवाने हैं बिहार के समस्तीपुर ज़िले के मुकुंद प्रसाद सिंह. जिले के बथुआ बुजुर्ग गांव में रहने वाले मुकुंद बीते चालीस वर्षों से भारत के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का स्कोरकार्ड अपने हाथों से लिखकर तैयार कर रहे हैं.

साथ ही 1983 के क्रिकेट विश्व कप और उसके बाद हुए क्रिकेट के सभी बड़े टूर्नामेंट्स का स्कोरकार्ड भी उनके पास है. 2013 में उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ था.

मुकुंद प्रसाद सिंह

करीब साठ साल के मुकुंद प्रसाद सिंह को डायरी लिखने की सीख अपने स्वतंत्रता सेनानी नाना यमुना प्रसाद सिंह से मिली. वे कहते हैं, ‘‘नाना ने मुझे सिखाया कि जीवन में जो कुछ भी करो उसे लिखो जरुर. डायरी लिखने की शुरुआत मैंने स्कूल के दिनों से ही कर दी थी.’’

जानकारियां दर्ज करने का काम मुकुंद ने फिल्मों का विवरण लिखने से शुरू किया. रेडियो पर फिल्मी गाने सुनते-सुनते उन्हें क्रिकेट कमेंटरी का भी चस्का लगा. और फिर 1976 में हुई भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज से उन्होंने क्रिकेट स्कोरकार्ड तैयार करना शुरू किया.

मुकुंद के मुताबिक उन्होंने बीते चार दशको में बीमार पड़ने, किसी न्यौता-निमंत्रण में जाने और दूसरी तमाम तरह की चुनौतियों और मसरुफियात के बीच अपने जुनून को कायम रखा है.

मुकुंद खुद से तैयार किए एक खाके (फॉर्मेट) पर स्कोरकार्ड तैयार करते हैं. उनके स्कोर कार्ड में स्कोरर, स्टैटिस्टिशन, कमेंटेटर्स के साथ-साथ मैच की ख़ास बातों तक का जिक्र भी रहता है.

मुकुंद प्रसाद सिंह

मुकुंद प्रसाद सिंह बताते हैं, ‘‘आधिकारिक स्कोरकार्ड कैसे तैयार होता है, किस फॉर्मेट पर तैयार होता है, उसे जानने-देखने की कभी मैंने कोशिश नहीं की. न ही कभी इस शौक को पेशा बनने का ख्याल ही मुझे आया.’’

दरअसल मुकुंद मूल रुप से एक दस्तावेज़नवीस सरीखे हैं. उनकी जिंदगी में जो कुछ घटता है, उसे वो डायरी में दर्ज कर लेते हैं. उससे जुड़े कुछ कागजात हों तो उन्हें संभाल कर रख लेते हैं.

चाहे वह रेल टिकट हो, बिजली बिल, शादी के निमंत्रण पत्र, मोबाइल वाउचर या कुछ और. स्कोरकार्ड के फाइल और दूसरी चीजों से उनके घर की तीन आलमारियां भरी हुई हैं.

बतौर बल्लेबाज़ सुनील गावस्कार और बतौर हरफ़नमौला खिलाड़ी कपिल देव मुकुंद के सबसे पसंदीदा खिलाड़ी रहे हैं.

मुकुंद प्रसाद सिंह ने अभी तक स्टेडियम जाकर कोई अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं देखा है. जमशेदपुर और कानपुर जाकर मैच देखने का मौका मिला भी तो वे गए नहीं. मुकुंद बताते हैं, ‘‘मुझे लगा कि स्टेडियम के माहौल में मैं स्कोरकार्ड तैयार नहीं कर पाऊंगा.’’

समय के साथ मुकुंद अब स्कोर कार्ड तैयार करने के लिए मैचों के लाइव प्रसारण और इंटरनेट की भी मदद लेते हैं. लेकिन रेडियो ही उनका सबसे भरोसेमंद साथी बना हुआ है.

मुकुंद प्रसाद सिंह

मुकुंद बताते हैं, ‘‘2000 में भारत-दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरीज के दौरान मेरे चाचा की मौत हो गई थी. इस दौरान बस के छत पर यात्रा करते हुए और श्मशान घाट में भी रेडियो के सहारे मैंने एक मैच का स्कोरकार्ड तैयार किया था.’’

इसी तरह एक मैच का स्कारकार्ड उन्होंने पटना से मुगलसराय की ट्रेन यात्रा के बीच तैयार किया. इस दौरान मुकुंद के मुताबिक सिग्नल के लिए वे रेडियो को अपने हाथ से बांधकर खिड़की से अंदर-बाहर भी करते-रहते थे.

मुकुंद के मुताबिक घरवाले और जानने वाले शुरुआत में उन्हें बेवकूफ समझते थे, ताने देते थे कि लिख कर क्या कर लोगे. लेकिन पुस्कार और सम्मान मिलने से अब हर एक का नजरिया बदला है.

मुकुंद की पत्नी शोभा कहती हैं, ‘‘बहुत टेंशन होता था. लगता था कि क्या कर रहे हैं. बच्चों के ऊपर ध्यान देंगे कि नहीं. बच्चे ऐसे में कुछ बन पाएंगे कि नहीं. अब तो बहुत खुशी होती है इनका नाम बहुत ऊपर चला गया.’’

लेकिन शोभा यह भी बताना नहीं भूलतीं, ‘‘किसी मैच के दौरान कोई जरुरी काम पड़ जाए, कोई मेहमान आ जाए तो यह सब जिम्मेदारी मुझे ही उठानी पड़ती है.’’

मुकुंद प्रसाद सिंह

तरुण कुमार ने बतौर पत्रकार मुकुंद के शौक को अखबार के जरिए पहले-पहल आम लोगों तक पहुँचाया था. वे बताते हैं, ‘‘पहले लोग मुकुंद के काम को पागलपन कहते थे. अब समाज के लोग मुकुंद के काम से गौरवान्वित हैं.’’

डायमंड बुक्स की किताब ‘‘सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धोनी’’ को तैयार करने में भी मुकुंद का योगदान रहा है. अपने काम की अहमियत के बारे में मुकुंद कहते हैं, ‘‘अगर कभी किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण ऑडियो-वीडियो रिकॉर्ड्स खत्म हो जाएं तब उनके हाथों का लिखा काम आएगा. और ये सिलसिला तब तक चलेगा जब तक कि मेरे हाथ और आंखें काम करेंगी.’’

मुकुंद 2012 से गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने गिनीज़ के पास अपने कागजात भी भेजे हैं. लेकिन अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है.

मुकुंद कहते हैं, ‘‘लगता है कि मैं अब तक अपने रिकॉर्ड के दावे को उन के सामने अच्छे से पेश नहीं कर पाया हूं.’’

Source : BBC