बिहार संवादी, पटना में 21 और 22 अप्रैल को दो दिनों का साहित्य उत्सव

अपनी माटी, अपने लेखन का उत्सव

 

अनंत विजय

पटना के तारामंडल में दैनिक जागरण की तरफ से 21 और 22 अप्रैल को दो दिनों का साहित्य उत्सव, बिहार संवादी के आयोजन की घोषणा के साथ इसके स्वरूप को लेकर साहित्य जगत में चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल ये पूरे देश का पहला ऐसा साहित्यक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें स्थानीय प्रतिभाओं को अनिवार्य प्राथमिकता दी जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त देशभर में साढे तीन सौ के करीब लिटरेचर फेस्टिवल हो रहे हैं लेकिन ज्यादातर लिटरेचर फेस्टिवल में स्टार लेखकों की चमक दमक में साहित्यिक विमर्श कहीं खो सा जाता है और लिटरेचर फेस्टिवल मीना बाजार में तब्दील हो जाते हैं। ऐसे माहौल में बिहार संवादी का स्थानीयता को बढ़ावा देने की पहल का देश भर के साहित्यकार स्वागत कर रहे हैं। बिहारियों के अपने इस साहित्य उत्सव में देशभर में अलग अलग हिस्से में रह रहे लेखकों कलाकारों संस्कृतिकर्मियों का दो दिन का जुटान होगा जिसकी उत्सकुता से प्रतीक्षा की जा रही है।

हिंदी के सबसे ज्यादा समादृत लेखकों में से एक नरेन्द्र कोहली को बिहार संवादी से बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। उन्होंने कहा कि ‘मैंने अपना लेखकीय जीवन कॉलेज के पहले ही शुरू कर दिया था। जब मैं जमशेदपुर के अपने कॉलेज में पहुंचा तो एक कहानी लिखी और उसका पाठ लेखक मंडल में किया जिसे मेरे गुरू सत्यदेव ओझा चलाते थे। जब मैंने कहानी सुनाई तो मुझे आशंका थी कि कहानी बन भी पाई है या नहीं लेकिन सत्यदेव ओझा ने उसको मौलिक रचना करार दिया था। दरअसल लेखकों के लिए स्थनीय धरातल पर मिलना-जुलना, सुनना-सुनाना, विचार करना, मत देना बेहद लाभदायक होता है। युवा और वरिष्ठ लेखकों के बीच का संवाद दोनों को एक दूसरे को जानने समझने का मौका देता है। पुराने और अनुभवी लेखकों को बदलती पीढ़ी के अनुभवों का पता चलता है और नए लेखकों को अनुभवी लेखकों के कौशल का लाभ मिलता है। मुझे उम्मीद है कि बिहार संवादी का मंच बैगर किसी ईर्ष्या-द्वेष के एक ऐसा मंच बनेगा जहां से बिहार की प्रतिभा निखर कर आएगी।‘

हिंदी की वरिष्ठ कथाकार चित्रा मुदगल के मुताबिक बिहार संवादी के आयोजन का जो दृषटिकोण है वो स्वागत योग्य है। उनका मानना है कि ‘बिहार संवादी में स्थानीय प्रतिभाओं को एक मंच पर इकट्ठा कर उनके बीच संवाद का जो वैशिष्ट्य होगा वो भविष्य में साहित्य के आकलन के काम आएगा। जब भी स्थानीय प्रतिभाओं चाहे वो कला के क्षेत्र से हों या साहित्य संस्कृति से हों का आकलन होगा तो उससे पता चलेगा कि बिहार की जमीन कितनी उर्वरा थी और अपनी परंपरा या विरासत का संवहन कौन कौन कर रहा है । इस आयोजन से ये भी पता चलेगा कि वर्तमान समय के दबाव के बावजूद अपनी गौरवशाली परंपरा का संवहन करनेवाले लोग कौन कौन हैं। इसका एक दूसरा महत्व यह भी है कि अन्य जगह के लोगों को पता चलेगा कि बिहार अपने पुराने वैभव को लेकर अब भी उतना ही सक्रिय और जीवंत है और उसको भरपूर जी रहा है।‘

साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि लीलाधर जगूड़ी बिहार संवादी को अंग्रेजी के लिट फेस्ट के मुकाबले अपनी भाषा और अपनी बोली का उत्सव करार देते हुए इसके महत्व को रेखांकित करते हैं। उनका कहना है कि ‘आजकल ये फैशन चल पड़ा है कि किताबें पढ़ी जाएं या नहीं, किताबें बिके या ना बिकें, पाठक बनें या ना बनें लेकिन धड़ाधड़ किताबें छपें और आयोजन हों। बिहार में सिर्फ बिहार के लेखकों को लेकर ये आयोजन स्थानीय साहित्य की जरूरत भी हो सकती है और साहित्य जगत को बिहार की प्रतिभाओं के बारे में बताने का उपक्रम भी।‘ इस शुरुआत का उन्होंने स्वागत किया है।

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Quote of the day: ““There is no surer foundation for a beautiful friendship than a mutual taste in literature.” 
― P.G. Wodehouse