HomeBiharबिहार और शराबबंदी | Neha Nupur Bihar Share Pin उस दिन चौथी कक्षा में पढ़ाते समय एक सवाल आया था “आपको पेड़-पौधों से क्या-क्या प्राप्त होता है?” मैंने सीधा सवाल बच्चों से किया और बहुत सारे जवाब मिले जो आप भी देंगे, मसलन फल, फूल, जलावन, लकड़ी, ऑक्सीजन वैगेरह-वैगेरह| लेकिन हमेशा शांत रहने वाला वो बच्चा पहली बार कुछ बोला था- “शराब”| मैं समझ गयी गाँव में आसानी से उपलब्ध “महुआ” से बनने वाली इस चीज़ को इसने बहुत करीब से जाना है| मैंने कोशिश की तो पता चला उसका परिवार इसी शराब के सहारे चलता है, असल में घर-खर्च और घर में झगड़े का एक यही बहाना है| उसे भी स्कूल के बाद शाम में शराब बेचना होता है| ये एक वजह थी कि सभ्य घर के बच्चों को उस से दूर रहने की हिदायत मिलती थी| काश लोग इतनी ही नफरत उसके द्वारा बेचे जाने वाले वस्तु से करते तो शायद उसके परिवारवाले घर-खर्च के लिए किसी और रास्ते पर होते| खैर, मैंने पूछा “तुम बड़े हो कर क्या करोगे” तो उसने दो टुक जवाब दिया “मिस कुछुओ करेंगे, शराब नहीं बनायेंगे|” मुझे ख़ुशी हुई और उसके उत्साहवर्धन के लिए पूरी कक्षा में तालियाँ भी बजीं| बिहार में शराबबंदी डॉन को पकड़ने जितना ही मुश्किल मुहीम है, जानते हुए भी एक कदम जो इस ओर उठाया गया है, किसी “मिशन इम्पॉसिबल” से कम तो नहीं| भविष्य की कहानी तो वक्त कहेगा लेकिन अभी इस शराबबंदी का बिहार में ठीक वैसा ही स्वागत हो रहा है जैसा घर में नये आये दामाद का होता है| दामाद की तारीफ के साथ-साथ कुछ जो खोट निकालने की कोशिशें लगातार होती रहतीं हैं ठीक वैसे ही| कई लोगों की आखिरी दारू पार्टी हो रही है तो कई लोगों की पहली दारू पार्टी करने का अरमान धुआं हो रहा है| हाल ही में बस से आना हुआ| ड्राईवर साहब बस को आगे बढ़ाने के अलावा एक ही मुद्दे पर अडिग थे “बिहार में शराबबंदी”| वहाँ मौजूद सभी नौजवान-बूढ़े इस बात से खुश थे कि देर से ही सही “शराबबंद” तो हुआ| कई कह रहे थे “ई काम 15-20 साल पहले हुआ रहता तो आज हम भी काम के आदमी रहते| देखिये न अब रोज मजदूरी का 150 रुपिया बचा लेते हैं”| किसी ने ऑब्जेक्शन किया “काश भईया ये बंदी चलते रहता, हमरा बचवा पढ़-लिख जाता कम-से-कम| जैसे हम बर्बाद हुए, कहीं लड़का भी बर्बाद ना हो जाये| ये चलते रहेगा तब न!” तभी ड्राइवर साहब भड़के “ऐसे-कैसे अब शराबबंदी बंद होगा भाई, औरत सब मिल के हरवा भी सकती है, जैसे जितवाई है”| ये मुद्दा ट्रेंड में था, ट्विटर पर नाहीं जी, बसवा में| कुछ लोगों की परेशानी ये है कि गाँव का एक मात्र मनोरंजन मंगरुआ अब चुप ही हो गया है एकदम से| बेचारे का मुँह तो तब ही खुलता था जब दो पाउच अंदर जाता था| तब ही होश में आता था और वो सब सुनाता-दिखाता था जो कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल में दिखाना बाकी रह गया| सारे सरकारी नौकरों की खबर भी लेता था चुन-चुन के| और वो मुन्नीलाल जी अभी-अभी बाल-बाल बचे हैं| बिहार-यूपी के बॉर्डर पर गये थे दो घूंट की तलाश में| चांस लग भी गया था| दो घूंट मिल भी गये थे| लेकिन वापस आते वक्त वो जो सिपाही जी एगो मशीन मुँह में घुसा के देखने लगे थे न कि मुँह में अल्कोहल की मात्र कितनी है, कसम से जान-प्राण मुँह में ही आ गया था| भगवान् भला करे, 20% अल्कोहल ही पाया गया और मुन्नीलाल जी बच के घर आ गये| दहशत में हैं बेचारे, किसी को कुछ बता नहीं रहे हैं| बताइए ऐसे एक्के बार देसी-विदेसी सब बंद कर दिए हैं, मेहमानों का स्वागत कैसे होगा अब| मुर्गा तो अब भी है… लेकिन उसका साथी दारू!! ओह !! यही “व्यवस्था” करना अब भारी पड़ेगा लड़की वालों को, और आप तो जानते ही हैं, इसका नहीं होना मतलब कोई सेवा-सत्कार नहीं होना| एक-एक बोतल भी छीन लिए गये हैं| कौन समझाये उनको! अरे! बोतल का और भी इस्तेमाल होता है भाई! गाँवों में जहाँ “देशी” का विकल्प ढूँढने की कोशिश हो रही है वहीं शहरों में “विदेशी” की दुकान अब मिल्क पार्लर बन चुकी है। मेरी सोच से तो वो शक्स नहीं जा रहा, जो पी-पा के सड़क किनारे लुढ़का रहता था| कोई उसे नाली में ठेल देता तो फिर कोई नाली से निकाल के सड़क पर वापस लुढ़का देता| अब जब वो होश में आएगा तो? क्या उसे अपने गंदे, लम्बे बालों को देखकर घिन आएगी? क्या अब वो अपने घर जायेगा? घर कहाँ है, क्या याद है उसे अब भी? क्या वो फिर से अपने पीने की व्यवस्था कर पायेगा? अगर कर पाया और जेल में पाया गया तो? वो जेल की राह जायेगा या “नशा मुक्ति केंद्र” की राह? भगवान् भला करे!! लोग कहते हैं “बिहार में शिक्षकों का वेतन शराब से ही बनता है”| कई शिक्षकों की चिंता का विषय ये भी है, नीतिश बाबु को बहुत नुकसान होने वाला है, कहीं शिक्षकों को साल में दो बार मिलने वाली “त्योहारी” अब हर “हैप्पी न्यू इयर” की मोहताज न हो जाये| खैर मैं भी शिक्षक हूँ| लेकिन खुश हूँ, बल्कि बहुत खुश हूँ| विद्यालय प्रांगण में आ कर तमाशा करने वाला वो पियक्कड़ अब नहीं देखा जा रहा| विद्यालय के पीछे चलने वाली शराब-भट्ठी जिसके गंध से ठंडी हवा भी नशीली लगती थी, अब बंद हो चुकी है| और अब उस बच्चे को वाकई शराब बनाने-बेचने में परिवार का हाथ बनने की जरूरत नहीं पड़ेगी| अब वो “कुछुओ” करेगा लेकिन शराब से दूर रह पायेगा, वैसे ही जैसे पहले उसके दोस्त दूर रहते थे उससे| The views and opinions expressed in this article are those of the authors and do not necessarily reflect the official policy or position of PatnaBeats. Share Tweet Share Pin Comments comments