HomeBiharभिखारी ठाकुर के जरिये बुझिए हिंदी समाज की अगराहट, इतराहट, इठलाहट निराला Bihar 18 दिसंबर भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष आज भिखारी ठाकुर की जयंती है. नजर दौड़ाइये, कई जगहों पर खास आयोजन होते हुए मिलेंगे. भिखारी ठाकुर के गांव कुतुबपुर, पटना, बोकारो, रांची, गाजीपुर से लेकर दिल्ली तक. यह अच्छी बात है और हिंदी इलाका जिन चुनौतियों से गुजर रहा है, उसमें इसकी दरकार भी है. धर्म जब अपना ताप खोने लगती है, राजनीति की लय जब लड़खड़ाने लगती है तब संस्कृति को ही सामने आना होता है. यही हो रहा है. भिखारी दिन-ब-दिन मजबूत हो रहे हैं जबकि उनके व्यक्तित्व-कृतित्व-नेतृत्व की दुनिया अपने समय में ही विराट थी. जगदीश चंद्र माथुर जैसे आईसीएस अधिकारी से लेकर महेश्वराचार्य जैसे लेखक उसी समय में आंक रहे थे.लेकिन उनकी एक सीमा थी.उनके बाद वर्षों तक शुन्यता रही और फिर एक नया सिलसिला शुरू हुआ भिखारी पर लिखने, पढ़ने, कुछ करने का. तैयब हुसैन पीड़ित ने सिलसिला शुरू किया. शहीद छात्र नेता काॅमरेड चंद्रशेखर ने भिखारी ठाकुर को शोध अध्ययन का विषय बनाकर नौजवानों के बीच जड़ता को तोड़ने की कोशिश की और जेएनयू जैसे संस्थान में भिखारी को ले जाने की कोशिश की. छपरा के रहनिहार बिरेंद्र नारायण यादव ने उनके नाटकों और गीतों को सहेजकर सामने लाया. संजय उपाध्याय ने उनके बिदेसिया नाटक का मंचन देेश-दुनिया में घूमकर करना शुरू किया. हृषिकेश सुलभ ने जीवनीपरक नाटक लिखा. केदारनाथ सिंह जैसे हिंदी के चर्चित कवि ने भिखारी ठाकुर नाम से कविता लिखी. संजीव जैसे हिंदी के चर्चित उपन्यासकार ने भिखारी का जीवनीपरक उपन्यास ‘सूत्रधार’ नाम से लिखा. और भी कई काम हुए, हो रहे हैं. इनमें से अधिकांश काम 1989-90 के बाद होने शुरू हुए या कि चर्चित हुए. भारतीय राजनीति में पिछड़ी राजनीति का नया अध्याय शुरू होने के बाद से. उसके पहले 1987 में जब भिखारी ठाकुर का जन्मशति वर्ष हुआ था, तब तक कुछ ऐसे ठोस प्रयास की चर्चा नहीं मिलती-दिखती. हालिया वर्षों के ये सारे प्रयास व्यक्तिगत स्तर पर कह सकते हैं. सांस्थानिक स्तर पर अब भी शुन्यता ही दिखेगी. इस बात से तो कोई इंकार नहीं कर सकता न कि आज पूरी हिंदी पटटी में कोई ऐसा नायक नहीं दिखता जिसने समाज के इतने विविध आयामों पर बात की हो.रंगकर्म का इतने व्यापक दायरे में इस्तेमाल करनेवाला भी कोई दूसरा नहीं हुआ. एक-एक विधा के विशेषज्ञ हिंदी इलाके में बहुतेरे मिलेंगे. कोई अच्छा नाटककार मिलेगा, कोई अच्छा गीतकार मिलेगा, कोई अच्छा गायक मिलेगा, अभिनेता मिलेगा, कोई अच्छा समाजसुधारक मिलेगा लेकिन कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो एक साथ सभी फ्रंट पर काम किया हो.लेकिन हिंदी इलाके के सांस्थानिक दुनिया में भिखारी की स्थिति को देखिए. कोई एक विश्वविद्यालय नहीं मिलेगा, जहां अब तक भिखारी को पाठयक्रम मंे शामिल किया गया हो जबकि जनपदीय लेखकों को ही उभारने में ढेरों के नाम सामने लाये जाते रहे है. भिखारी की बात आते ही उन्हें भोजपुरी भाषा के दायरे में समेट दिया जाता है. पूरी हिंदी इलाके की बात छोड़िए, वे जिस बिहार के थे, वहां ही अब तक भिखारी सरकार के साथ-साथ हिंदी के संस्थान के नजरिये से इस लायक नहीं बन सके हैं कि आनेवाली पीढ़ी को उनके बारे में बताया जाये. विश्वविद्यालयों,काॅलेजों की बात कौन करे, स्कूली स्तर तक भी भिखारी शामिल नहीं हो सके हैं. अपनी पीठ खुद थपथापनेवाले या थपथपाने के लिए मठ खड़ा कर चेलों को तैयार करनेवाले हिंदी जमात में से किसी ने कभी आवाज भी नहीं उठायी कि भिखारी हमारे सबसे बड़े नायक हैं, बिहारीपन के प्रतिक भी, हमारी पहचान के वाहक, जिनको शामिल किया जाये पाठयक्रम में. साहित्य संस्कृति की दृष्टि से नहीं सही, प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में ही सही बताया जाये बच्चों को कि एक ऐसा आदमी था, जो 28 की उम्र पार करने तक कायदे से पढ़ना लिखना नहीं जानता था.पढ़ाई छोड़ चुका था. पुश्तैनी पेशा को अपनाकर नाई का काम करने लगा था.फिर उसके मन में आया कि वह पढे़-लिखे-सीखे. सीखना शुरू किया. अपनी मातृभाषा के अलावा कोई दूसरी जबान नहीं जानता था लेकिन हीनता की भावना से ग्रसित नहंी हुआ. उसी में सीखा, उसी में लिखा और फिर लिखा तो 29 नाटकों को लिख डाला और सिर्फ नाटक लिखकर छोड़ नहंी दिया, उसे लेकर गांव गांव घूमने लगा. सिर्फ घूमने नहीं लगा. वह निजी जीवन में धार्मिक बना रहा लेकिन अपने कृतित्व में धर्म की जकड़न से ही उपजी कुरीतियों पर प्रहार करता रहा. जो लिखा उसका 12 आना हिस्सा औरतों को स्वर देने में लगा दिया. औरत जैसा बन गया. इतनी सी ही बातें हिंदी इलाके में भावी पीढ़ी को बताने का स्वर उठता तो हिंदी इलाके की तसवीर तकदीर बदलती. अपनी मातृभाषा जाननेवालों के बीच हीनता की भावना नहीं आती.अंग्रेजी का श्रेष्ठताबोध कमता और फिर यह बात भी स्थापित होती कि उम्र की सीमा तो सिर्फ नौकरी करने के लिए ही होती है, बाकि सृजन की दुनिया उम्र और भाषा का मोहताज नहीं होती. Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook and Twitter. Quote of the day: “From a small seed a mighty trunk may grow.” ― Aeschylus