HomeBiharजस्टिस काटजू को एक बिहारी का जवाब Sidharth Shankar Bihar Share Pin Photo by Kunal Patil आदरणीय काटजू साहब, पिछले दिनों आपने पाकिस्तान से एक पेशकश की थी। आपका कहना था कि अगर पाकिस्तान को कश्मीर चाहिए तो उसे साथ ही बिहार भी लेना पड़ेगा। जहाँ तक मैंने पढ़ा है आपके फेसबुक के पोस्ट्स को उस हिसाब से मुझे ये व्यंग में कही बात लगी। लेकिन इस व्यंग के पीछे की भावना काफी नकारात्मक और एक पुरे राज्य को अपमानित करने की लगी। कहीं न कहीं आपकी इस “पेशकश” में से उस मानसिकता का बोध हुआ जो बिहार को इस देश पर एक बोझ या धब्बा मानता है। मैं बिहारी हूँ और आपको शायद लग रहा होगा कि इस वजह से आपकी बात ने मुझे आहत किया है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं आहत बिल्कुल भी नहीं हूँ, बल्कि मुझे तरस आ रहा है। तरस आपकी उस अनभिज्ञता भरी सोच पर जिसकी वजह से आपके नज़रों में बिहार की ऐसी छवि है। आपको लगा होगा कि बिहार को पाकिस्तान को देने से हमारे देश को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन फर्क आज मैं आपको बताता हूँ। अगर बिहार देश का हिस्सा नहीं रहा तो देश के हाथ से एक ऐसी विरासत छिन जायेगी जिसके ऊपर इस देश के लोकतंत्र की नींव पड़ी है। आप उस चंद्रगुप्त को भारत के इतिहास से छीन लेंगे जिसने पहली बार भारत की परिकल्पना को स्वरुप दिया था। आप शांति के प्रतीक बुद्ध की ज्ञानस्थली एक ऐसे देश को बना देंगे जिसका मुख्य कारोबार ही हिंसा है। आप उन सात शहीदों की जमीन, जिन्होंने अपनी जान एक तिरंगे के लिए गंवाई थी, एक ऐसे मुल्क को दे देना चाहते है जो एक आतंकवादी को अपना नायक मानते हैं। आप उस दिनकर को खो देंगे जो इस देश के राष्ट्रकवि हैं। क्या आपके मन में ऐसी विरासत को ठुकराते हुए हिचक नहीं होगी? ये तो पुरानी बातें हुयी, वर्तमान की बात सुनिये। बिहार को गँवा कर आप उन नौजवानों की फौज को गँवा बैठेंगे जो इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सबसे ज़्यादा योगदान करते हैं। आप उन कामगारों की मेहनत से हाथ धो बैठेंगे जिनके कर्मठ हाथों की वजह से इस देश के हर महानगर की तरक्की का पहिया घूमता है। और इन सब से ऊपर, आप उस रेजिमेंट को अपना नहीं कह सकेंगे जिस रेजिमेंट के फौजियों की जान कायर पाकिस्तानियों ने ली। जस्टिस मार्कण्डेय काटजू, क्या आप मज़ाक में भी उन शहीद सिपाहियों को एक पाकिस्तानी रेजिमेंट के सिपाही बताना चाहते हैं जिनकी हत्या की पाकिस्तानियों ने? जैसा कि मैंने कहा, मैं आहत नहीं हूँ। लेकिन मैं दुखी ज़रूर हूँ। इस बात से दुखी की जिस देश की हिफाज़त करने की राह में सैनिकों ने अपनी जान दी, आप उन्ही को उस देश के दुश्मन मुल्क को सौंपना चाहते हैं। ये कोई शिकायत नहीं है काटजू साहब और न ही आपको नीचा दिखाने की कोई कोशिश, मेरी कोशिश तो ये है कि बिहार की जैसी गलत छवि और हमारे खिलाफ जो भी पूर्वाग्रह आपके मन में है, उस के इतर आपको बिहार की सच्चाई से रूबरू कराया जाय। बिहार कोई दे दी जाने वाली वस्तु नहीं है, बिहार इस देश के स्तंभों में से एक है। भारत है तो बिहार है, बिहार है तो भारत है। आपका ये भी कहना है कि बिहारियों के पास सेन्स ऑफ़ ह्यूमर की कमी है इस वजह से वो आपके इस व्यंग पर आपत्ति जता रहे हैं। इस विषय में मैं ये साफ़ कर दूँ कि दिक्कत मज़ाक से नहीं, उस मज़ाक के पीछे की मानसिकता की है। एक मज़ाक के लिबास में अगर दुर्भावना छिपी हो तो वो मज़ाक अपना मज़ा खो देता है। जब मज़ाक तंज बन जाये तो उस पर आपत्ति जायज़ है। आपके सेन्स ऑफ़ ह्यूमर में सेन्स आ जाये ऐसी मनोकामना के साथ, आपका हमवतन बिहारी| Share Tweet Share Pin Comments comments