एक प्राउड बिहारी का खुला-ख़त |

आदरणीय बिहार के लिए चिंतित देशवासियों!
सादर प्रणाम!

ख़त हमेशा से ट्रेंड में है| कोई चोरी-छिप्पे ख़त खोलता है तो कोई खुला-ख़त लिखता है| पता नहीं एक लड़की अपना पहला ख़त किसके नाम लिखना चाहती है? पिता को, प्रेमी को, पति को, बेटे को या समाज को? लेकिन मैं लिख रही हूँ उनको जो अब तक बिहार को स्टीरियोटाइप छवि में बांधे हुए हैं और उसमें खुद को इतना ढाल चुके हैं कि देख नहीं पाते बिहार का वर्तमान क्या है|
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे आगे का तेवर थोड़ा तल्ख़ होगा| अगर आप उस तेवर को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो ये ख़त आपके लिए हीं है|

मैं इतिहास की बात नहीं करती, सभी जानते हैं भारतीय इतिहास का हश्र बिहार के बिना बिल्कुल वैसा ही होता जैसा “कॉमेडी नाइट्स विद कपिल” का कपिल के बाद हुआ| मैं किसी घमंड में नहीं हूँ, लेकिन मैं उन में से भी नहीं हूँ जो दो दिन बिहार से बाहर रह के खुद को बिहारी कहलाने में शर्म महसूस करने लगते हैं| गर्व से कहती हूँ, “आई एम अ प्राउड बिहारी”|

आप कभी बिहार आये नहीं हैं लेकिन पूर्वाग्रह में हैं “यहाँ जंगलराज है”| यहाँ के लोग डर में हैं, दहशत में हैं, घर से बाहर नहीं निकलते होंगे, सड़कों पे कर्फ्यू सा माहौल होगा, लड़कियाँ तो बाहर निकलते ही लूट ली जाती होंगी, घरों में डाके पड़ते होंगे, यह इतना देहाती है कि कोई छोटा-मोटा सामान भी मिलना मुश्किल होता होगा, अनपढ़-गंवार लोग ही रहते होंगे जिन पर बाहुबली टाइप किसी दबंग का राज है, सड़कें तो गड्ढों में ही होंगी और पता नहीं क्या क्या… शायद जैसा फिल्मों में दिखाते हैं| सच कहूँ मुझे यही डर साउथ को ले कर लगा रहता है, न जाने वहां कौन सी बात पर कट्टा निकाल लेते होंगे, किस गुमान में आकर कटार चल जाती होगी, सड़कें बहुत अच्छी होंगी लेकिन उसका इस्तेलाम सिर्फ जल्द-से-जल्द दुश्मन तक पहुँचने में ही होता होगा, हर दस मिनट में बलात्कार या दंगे का भय रहता होगा और पता नहीं क्या-क्या… जैसा फिल्मों में दिखाते हैं| इतना तो यकीन रहता है, ये फिल्म है इसलिए यहाँ हीरो आ गया, असल में तो नहीं आता होगा, जबकि ये यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वहां उस तरह की गुंडागर्दी नहीं होती होगी|

मम्मी को हजार बार कह चुकी हूँ, आज आपको भी बता ही दूँ, मैं दिल्ली-मुंबई नहीं जाना चाहती| दिल्ली की दिल्लगी के बारे में इतना सुन-पढ़ चुकी हूँ कि जब तक जुडो-कराटे न सीखूं, वहां घुमने भी ना जाऊं, और मजबूरन कभी जाना ही पड़े तो सारे लड़कों को अपना दुश्मन ही मान के चलूँ, जेब में जरूरत की चीजों से ज्यादा सुरक्षा की चीजें भरी पड़ी हों| और मुंबई ? वहां तो इतने धमाके होते हैं कि अगर पटाखे की आवाज भी सुन लूँ तो सदमे में मर जाऊं|
मैं भी जानती हूँ और आप भी, ये सारी बातें कोरी कल्पना मात्र हैं| लेकिन इन्हीं वजहों से तो आपने बिहार को “जंगली” कहा था न!

मैं किसी पार्टी विशेष की पक्षधर नहीं रही, ना ही हूँ, न होने के गुण ही हैं मुझमें, लेकिन आपका हर बात में हमें नीचा दिखाने का सबसे अजीब तर्क मुझे बोलने पर विवश कर देता है, वो ये कि “तुम्हीं ने तो नहीं चुना फलाना पार्टी को, अब भुगतो”| साहब एक बात बता दो, क्या उस पार्टी की सरकार जहाँ है वहां कोई मर्डर नहीं हुआ, किसी की किसी से कोई दुश्मनी नहीं हुई, रोड एक्सीडेंट्स टल गये, बलात्कारियों को इतना भय था कि वो मुँह छुपाये घूमने लगे?
लेकिन नहीं, आप सिर्फ इस बात के लिए हर एक यु.पी.-बिहार वाले को ताने देते फिरेंगे| आप ये तो याद रखते हैं कि बिहार विधानसभा में किसी खास पार्टी की हार हुई, इसलिए हम छोटी सोच वाले हैं, फिर आप ये क्यों भूल जाते हैं कि लोकसभा में अगर बहुमत में वो बैठे हैं तो इन्हीं यु.पी.-बिहार वालों के दिए 102 (71+31) सीट्स की बदौलत|

हाँ, बिहार में आते ही आपकी सुपरफास्ट “पैसेंजर” में बदल जाती है, लेकिन ऐसा सिर्फ बिहार में नहीं होता| अगर होता भी है तो वजह है बिहार को ना मिलने वाली पसेंजेर्स ट्रेन, जिसकी यहाँ सख्त जरूरत है|

हाँ, बिहार में ट्रकों-ट्रेक्टरों में बजने वाले “भोजपुरी गानों” में “अश्लीलता” होती है, लेकिन बैन तो हनी सिंह के गाने भी हुए हैं, चिकनी-चमेली हिंदी में सुन के बड़ा प्यारा लगता है, और साउथ की फिल्मों की सुपर क्वालिटी वाले आइटम नंबर्स? नहीं उन पर ध्यान क्यों दें, वो तो आर्ट का हिस्सा है, हमें गालियाँ तो सिर्फ बिहारियों को सुनानी है|

आप ये तो याद रखते हैं कि बिहारी गाने में “अश्लीलता” होती है, लेकिन आप याद नहीं रखना चाहते कि यहाँ के लोकगीत आपके कानों को सुकून भी देते हैं| आपको भोजपुरी सिनेमा की कोई घटिया कहानी याद रहती है लेकिन याद नहीं रखना चाहते “मिथिला मखान” कैसे राष्ट्रीय पुरस्कार ले उड़ा| मैं शायद भूल रही हूँ, “स्वच्छ भारत मिशन” तो सिर्फ बिहार को साफ़ करने के लिए चलाया गया था| पूरा देश अब तक इसका इन्तेजार क्यों कर रहा था? बलात्कार के लगातार बढ़ते ग्राफ के बाद भी आपने उसे “बदतमीज राजधानी” नहीं कहा| लेकिन बिहार को “जंगलराज रिटर्न” का तमगा पहले ही पहना दिया| अब हर समाचार को आप इसी चश्मे से देखेंगे, स्वाभाविक सी बात है|

बिहार गरीब हो सकता है लेकिन यहाँ की जीवटता और अमीरी यहाँ के किसानों में है, जो हर साल कोशी की बाढ़ और दक्षिण के सुखाड़ में तबाह होने के बाद भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाते| क्या किसी ने बताया आपको, दक्षिण बिहार में मॉनसून को आये 3 साल हो चुके है!

कहीं किसी एम.एल.ए. की बिगडैल औलाद ने मौत का तमाशा बनाया और आप सभी बिहारियों को कोसने में लग गये, बिहार टूरिस्म की तरफ से खुद की लाइन्स बनाने लग गये, गाड़ियों के पीछे लगे वो मैसेज दिखाने लग गये| लेकिन आप तब कहाँ थे जब दूसरे एम.एल.ए. की औलाद यु.पी.एस.सी. में 100 के अंदर आती है| आपने तब क्यों बिहार टूरिस्म के नारे नहीं दिए “देंगे ऐसी बुद्धि छा जाओगे संसार में, कुछ दिन तो गुजरो बिहार में”? क्यों आपने कार के पीछे लिखा हुआ पोस्टर नहीं दिखाया “कृपया हॉर्न बजा के ध्यानभंग न करें, आप बिहार में हैं, अंदर भावी यु.पी.एस.सी. टॉपर बैठा हो सकता है|

बिहार नशामुक्त हो गया, आप चुप रहे| बिहार से अश्लील गाने बंद हो गये, आप चुप रहे| खैर चुप तो आप तब भी रहते हैं जब असम और महाराष्ट्र से बिहारियों को भगाया जाता है, हत्याएं की जातीं हैं| दिल्ली में डॉक्टर नारंग की सरेआम जान ले ली जाती है, आप इसे मात्र एक घटना करार देते हैं, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में व्यापम के तहत लोग मारे जाते हैं, आप इसे महज एक घटना करार देते हैं, लेकिन बिहार में किसी पत्रकार की मौत को आप सीधा “बिहार में बहार” वाला कैप्शन पहना देते हैं| क्यों? इन सारी घटनाओं का जितना दुःख आपको होता है उस से कहीं ज्यादा हमें होता है, हम भी इसी देश में पैदा हुए है|

बिहारी जहाँ भी हैं अपनी खास जगह बनाये हुए हैं, आपको इस बात की चिढ हो सकती है| ये दिखावे में विश्वास नहीं करते, कर के दिखा देते हैं, आपको इस से भी चिढ़ हो सकती है| बिहार अच्छी जगह नहीं, ये आपकी धारणा है| आपको इसे बदलना होगा| हमारी कोशिशें लगातार बनी हुईं हैं| हम दिखाते रहे हैं बिहार की अच्छाई को लेकिन आप उसे देखना ही नहीं चाहते| आप अपनी उसी धारणा के साथ खुश हैं| आप बिहारियों की अच्छाई क्यों प्रोमोट करेंगे भला! आपको तो ताने सुनाने हैं सामने जो भी बिहारी आये|

आप पंजाबी, हरियाणवी, बंगाली, मराठी टोन में बोलें तो एलिट क्लास, हम बिहारी टोन में कुछ कह दें तो “गंवार”? क्यों? कभी सोच के देखो ये “गंवारपन” किसके अंदर है? उसमें जो आपकी बात सुन के हँस के टाल देता है या आपमें जो ऐसा कह के जता देते हैं आप कितने “बुद्धिमान” हैं|

एक बात याद रहे, बिहार में सत्ता किसी की भी रही हो, बिहारियों ने कभी अपनी पहचान नहीं खोयी, न आजादी से पहले और ना ही आजादी के बाद| 15 साल हमे परिभाषित नहीं करते| 15 साल के बाद से अब तक की आपकी सोच आपको जरुर परिभाषित करती है|

ये सब मैं किसी गुमान में नहीं कह रही, ना ही इसलिए कह रही हूँ कि आप बिहार में हो रहे इन दुर्घटनाओं पर चर्चा ना करें| चर्चा होनी चाहिए, मुद्दे बनने चाहियें तभी तो रॉकी जैसे लोगों पर कार्यवाई होगी, जिनसे परेशानी हमें भी है| क्या आप कोई एक जगह बतायेंगे जहाँ सुरक्षा की 100% गारंटी ले सकते हों? अगर नहीं, तो बिहार को कोसना बंद करें, इन सब के लिए बिहारियों को बदनाम-जलील करना बंद करें|

खैर शिकायत आपसे भी नहीं है, शिकायत तो उनसे है जो इन तानों से बचने के लिए अपने बिहार की पहचान छुपाने की कोशिश करते हैं| खुद बिहार से बाहर रह के यहाँ वोटिंग करवाने का दंभ भरते हैं, और उस फलाना पार्टी के नहीं जीतने पर सारा दोष यहाँ रह रहे तमाम बिहारियों पर डालकर खुद को यहाँ की राजनीति से दूर बताने लगते हैं| इस सोच को बदलिए, ये आपकी जरूरत है, हमारी नहीं| और हो सके तो पूर्वाग्रह से बाहर निकलिए, बिहार आईये, बिहारियों से मिलिए तब धारणा बनाईये, हम उसे भी सहर्ष स्वीकार करेंगे|
जय हिन्द!
नेहा नूपुर