मधुश्रावणी उत्सव – मिथिला संस्कृति की शान

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों और उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जानेवाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम और एकता को बढ़ाते हैं, हमारा बिहार राज्य भी अनेकों त्योहारों को बड़े ही शानो शौकत से मनाता है , और हर त्योहार के अलग अलग अर्थ भी बताए जाते हैं।

∆सुहागनों का अनूठा पर्व मधुश्रावणि 

सावन शुक्ल तृतीया तिथि को सुहाग का पर्व हरियाली तीज और मधुश्रावणी का पर्व मनाया जाता है। मधुश्रावणी मुख्य रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित त्योहारों में से एक  है। सुहागन स्त्रियां इस व्रत के प्रति गहरी आस्था रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत पूजन से वैवाहिक जीवन में स्नेह और सुहाग बना रहता है। मधुश्रावणी व्रत को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह और उमंग नवविवाहिता कन्याओं में देखने को मिलता है।

∆ नवविवाहित कन्याएं मायके में रहकर, रखती है 14 दिनों का व्रत।

नवविवाहित कन्याएं श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन से सावन शुक्ल तृतीया तक यानी 14 दिनों तक दिन में बस एक समय भोजन करती हैं। आमतौर पर कन्याएं इन दिनों में मायके में रहती हैं और साज ऋंगार के साथ नियमित शाम में फूल चुनती हैं और डाला सजाती हैं। फिर इस डाले के फूलों से अगले दिन विषहर यानी नागवंश की पूजा करती हैं। दिन में फलाहार के बाद रात में ससुराल से आए अन्न से तैयार अरबा भोजन ग्रहण करती हैं। इन दिनों मिथिलांचल का हर कोना शिव नचारी व विद्यापति के गीतों से गुंजायमान रहता है। पर्व में पति-पत्नी साथ में नाग-नागिन, शिव-गौड़ी आदि की पूजा-अर्चना करते हैं। पति कितना भी व्यस्त क्यों न हो वह छुट्टी में ससुराल आने का प्रयास अवश्य करता है। इस बीच हंसी-मजाक का भी दौर जमकर चलता है। कहा जाता है कि इस पर्व में जो पत्नी पति के साथ गौड़ी-विषहरा की आराधना करती है, उसका सुहाग दीर्घायु होता है। व्रत के दौरान कथा के माध्यम से उन्हें सफल दांपत्य जीवन की शिक्षा भी दी जाती है।

∆ मिथिलांचल का इकलौता पर्व जिसमे महिला पुरोहित ही करवाते हैं पूजन विधि। 

 मधुश्रावणी में व्रतियों को महिला पंडित न सिर्फ पूजा कराती हैं बल्कि कथा वाचन भी करती हैं। इन्हें महिलाएं पंडितजी कहकर बुलाती भी हैं। इनकी माँग सबसे ज्यादा इसी पर्व में होती है , और काफ़ी मुश्किलों का सामना करना परता है इन्हे खोजने के लिए ।

∆ नाग-नागिन पर बासी फूल चढ़ाने की है परंपरा

नवविवाहिता नेहा झा,तन्नु मिश्रा,वर्षा,ज्योति,प्रीति झा, आदि ने बताया कि इस पूजन में बासी फूल चढ़ाने की परंपरा है।नाग-नागिन को बासी फूल-पत्ते ही चढाया जाता है।पूजा के प्रथम दिन मैना या कंचू के पांच पत्ते पर हर दिन सिन्दूर, मेंहदी,काजल,चंदन और पिठार से छोटे-छोटे नाग-नागिन बनाया गया।कम-से-कम 7 तरह के पत्ते और विभिन्न प्रकार के फूल पूजा में प्रयोग किया गया।

∆ टेमी दागने की है परंपरा।

पर्व के अंतिम दिन नवविवाहिताएं को रूई की टेमी से हाथ, घुठना, पैर पर पान के पत्ते रखकर टेमी ज’लाकर दा’गा जाएगा। नवविवाहिताओं के लिए यह अ’ग्नि परीक्षा होती है जो जो पति के दीर्घायु एवं अमर सुहाग की कामना के लिए की जाती है। जबकि कुछ बुजुर्ग महिलाओं का मानना है कि टेमी दा’गने से पति-पत्नी के बीच मधुर सम्बन्ध बना रहता है। लेकिन वर्तमान युग आधुनिकता का है , और इस प्रथा को मिथिला के बहुत से परिवारों ने बदला है , टेमी दागने की जगह चंदन लगाया जाता है , जिससे वर्ती को किसी प्रकार का दर्द न हो।

∆ सावन के महीने में ही क्यू मनाई जाती है मधुश्रावणी उत्सव ।

यह महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से मनुष्‍य की सभी इच्‍छाओं की पूर्ति होती है। कहा जाता है कि सावन का महिना हिन्दू धर्म के लिए बहुत पावन होता है, सावन के महीने में कजरी तीज, हरियाली तीज, मधुश्रावणी, नाग पंचमी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के रीति-रिवाज के मुताबिक भगवान शिव के लिए सावन का महीना काफी प्रिय है। इस महीने का संबंध पूर्ण रूप से शिव जी से माना जाता है। इस पूरे महीने में लोग भगवान शिव की जमकर अराधना करते हैं। जिस प्रकार सावन के महीने में चारो तरफ हरियाली छाई रहती है, ठीक उसी प्रकार नवदंपतियों के जीवन में भी हरियाली छाई रहे इसलिए मधुश्रावणी का त्योहार सावन के महीने में मनाया जाता है।