भगत सिंह की मौत का बदला लेने वाले बिहार के शहीद- ए -आजम बैकुंठ शुक्ल

हमारे देश भारत की आज़ादी आम बात  नहीं थी, यह आजादी हमें यूं ही नहीं मिली। इसके लिए न जाने कितने फांसी के फंदे पर झूले थे और न जाने कितनों ने गोली खाई थी, तब जाकर हमने यह आजादी पाई थी। देश कर्ज़दार है उन क्रांतिवीरों का जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। परंतु दु:ख है इतिहास में कुछ खास लोगों को ही जगह मिली, उन्हे गुमनामी के अंधेरे में झोंक दिया गया

∆18 वर्ष की आयु में ही महान क्रांतिकारी का रूप लिया था।

शहीद बैकुंठ शुक्ला का जन्म लालगंज प्रखण्ड के जलालपुर गांव में 15 मई 1907 को हुआ था। वे 18 वर्ष की उम्र में अपने ही गांव के महान क्रांतिकारी हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिपब्लिकन का बिहार में नेतृत्व कर रहे शेरे बिहार योगेंद्र शुक्ला के सम्पर्क में आये और सपत्नीक आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

∆लाहौर षड़यंत्र केस में H.S.R.A के फणींद्र नाथ घोष ने सरकारी गवाह बनकर की थी अपने ही साथियों से गद्दारी।

लाहौर षड़यंत्र केस 1915 के लिए ट्रायल लाहौर में आयोजित किए गए थे, जहाँ भारत सरकार अधिनियम 1915 के तहत एक विशेष न्यायाधिकरण का गठन किया गया था। कुल 291 षड्यंत्रकारियों को अभियोग के लिए रखा गया था, जिनमें से 42 को सजा सुनाई गई थी। करतार सिंह सराभा सहित, 114 को सेल्युलर जेल भेजा गया और 93 को अलग-अलग तरह की सजा दी गई थी इनमे ही शामिल थे भगत सिंह और उनके साथी, HSRA के फणींद्र नाथ घोष ने सरकारी गवाह बनकर अपने ही साथियों से गद्दारी की थी।

∆फणींद्र नाथ घोष की हत्या के लिए लगाई गई थी गोटी।

जिस फणीन्द्र नाथ घोष की गवाही पर सांडर्स मर्डर केस में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को फांसी दी गयी थी, उसकी मौत का फरमान पंजाब के क्रांतिकारियों ने कुछ यूं भेजा था-इस कलंक को धोओगे या ढोओगे? पंजाब से आये इस संदेश से बिहार के साथी विचलित थे। हाजीपुर सदाकत आश्रम में उनकी एक आपातकालीन बैठक हुई। इसमें मौजूद छह लोगों ने गोटी लगायी। गोटी इस बात पर कि आखिरकार फणीन्द्र नाथ घोष को खत्म कर भगत सिंह की मौत का बदला कौन लेगा। दरअसल, इस काम को करने के लिए हर कोई उतावला हो रहा था परंतु गोटी में बैकुंठ शुक्ल का नाम आया।

∆साथी चंद्रमा सिंह के साथ बेतिया के मीना बाजार में सरेआम मार दी गोली।

9 नवंबर 1932 की शाम करीब सात बजे इस महारथी ने बेतिया के मीना बाजार में तेज और धारदार हथियार से फणीन्द्र नाथ घोष को काट डाला। तब फणीन्द्र नाथ घोष अपने मित्र गणेश प्रसाद गुप्त से बातचीत कर रहा था। गणेश ने बैकुंठ शुक्ल को पकडऩे का प्रयास किया तो उस पर भी प्रहार किये गये। फणीन्द्र नाथ घोष का प्राणांत 17 नवंबर को, जबकि गणेश प्रसाद का 20 नवंबर को हुआ।

∆बैकुंठ शुक्ल के जज्बे से डर गई थी ब्रिटिश सरकार।

फणीन्द्र की मौत से ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गयी थी। जोर-शोर से हत्यारों की तलाश शुरू हुई। मौके पर दोनों क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया था।सरकार ने बैकुंठ शुक्ल की गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा कर दी। बाद में चंद्रमा सिंह 5 जनवरी 1933 को कानपुर से, जबकि बैकुंठ शुक्ल 6 जुलाई 1933 को हाजीपुर पुल के सोनपुर वाले छोर से गिरफ्तार कर लिये गये थे, गिरफ्तारी के समय उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘जोगेन्द्र शुक्ल की जय’ के नारे लगाये। मुजफ्फरपुर में दोनों शूरवीरों पर फणीन्द्र नाथ घोष की हत्या का मुकदमा चलाया गया था।

∆पटना उच्च न्यायालय ने भी सत्र न्यायाधीश के फैसले की पुष्टि करदी थी।

23 फरवरी 1934 को सत्र न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए बैकुंठ शुक्ल को फांसी की सजा दे दी, जबकि चंद्रमा सिंह को दोषी नहीं पाते हुए रिहा कर दिया। बैकुंठ शुक्ल ने सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन 18 अप्रैल 1934 को हाईकोर्ट ने सत्र न्यायाधीश के फैसले की पुष्टि कर दी। इस फैसले ने 14 मई 1934 को सरंजाम पाया और गया जेल में बैकुंठ शुक्ल को फांसी दे दी गयी।

∆बैकुंठ शुक्ल ने दासगुप्ता को दी अंतिम विदाई, बाल विवाह को खत्म करने का किया था अनुरोध।

बैकुंठ शुक्ल ने पुकार कर कहा-‘दादा, अब तो चलना है। मैं एक बात कहना चाहता हूं। आप जेल से बाहर जाने के बाद बिहार में बाल विवाह की जो प्रथा आज भी प्रचलित है, उसे बंद करने का प्रयत्न अवश्य कीजिएगा। पंद्रह नंबर से बाहर निकलने के पहले बैकुंठ शुक्ल क्षण भर के लिए रुके और दासगुप्त की सेल की ओर देखकर बोले-‘अब चलता हूं। मैं फिर आऊंगा। देश तो आजाद नहीं हुआ। वंदेमातरम्…।

∆बैकुंठ शुक्ल के नाम पे, गया सेंट्रल जेल का नाम रखने का प्रस्ताव।

नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने मुख्यमंत्री से गया सेंट्रल जेल का नाम अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला केंद्रीय कारा करने की अनुशंसा की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में नगर विकास मंत्री ने कहा है 14 मई 1934 को गया केंद्रीय कारा में अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला को फांसी दी गई थी। राज्य सरकार ने अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला की आदमकद प्रतिमा मुजफ्फरपुर में लगाई है। विभिन्न समूह-संगठनों द्वारा समय-समय पर शहीद बैकुंठ शुक्ला के नाम पर गया सेंट्रल जेल का नाम रखने की मांग उठती रही है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में श्री शर्मा ने कहा है कि लोगों की इस भावना को देखते हुए गया सेंट्रल जेल का नाम अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला के नाम पर किया जाना चाहिए।