
सोचा था सारे सवालों के जवाब दे चुका हूं। बिहार आने पर कई जवाब सुनाने के बाद काउंटर आई एक घिसी पिटी लाइन से पीछा छुड़ाना जरूरी है।
कुछ जानकर लोग मुझे बताते हैं “ बबुआ! ई बिहार का तरक्की बस पटना भर ही है। दो तीन किलोमीटर दाएं बाएं होइए, तब ग्राउंड लेवल समझ पाएंगे। ”
दो-तीन किलोमीटर दाएं बाएं वाला लॉजिक भी मैं खूब समझता हूं। बोरिंग रोड एक पॉश कॉलोनी है। इधर सर्विसेज और फैसिलिटी दिल्ली मुंबई जितनी महंगी हैं। छात्र अक्सर एक तिलिस्मी दुनिया में रहते हैं, जहां हर महीने एक निश्चित तारीख को रुपए जमा होते रहते हैं। ऐसे में छात्रों का मोहभंग करने के लिए ऐसी ज्ञानी चचा टाइप फौज हर नुक्कड़, चौराहे पर पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाने में लगी हुई है।
वह लोग हमें अंधेरा दिखा रहे हैं, जिसने उन्हें उनके परिवारों से दूर किया है। हम उस उजाले की लौ दिल में जला रहे हैं जिससे हम अपने बिहार में रौशनी बिखेर सकें। वह लोग नहीं जानते कि हम अपने हौसलों से उड़ान भर रहे हैं, इन तरक्कीनुमा पंखों का उसमें बहुत कम योगदान है।
अभी हाल फिलहाल की एकेडमिक छुट्टियों में पटना के सबसे व्यस्ततम इलाकों के चक्कर काट कर आया हूं। अशोक राजपथ मेरी समझ में सबसे ज्यादा ट्रैफिक लोड झेलने वाली सड़कों में से एक है।
यह समस्या तब और गंभीर हो गई है जब कई मेगाप्रोजेक्ट सड़क के ऊपर और नीचे तोड़फोड़ करने में लगे हुए हैं। पटना सिटी, दीघा, मुसल्लहपुर, महेंद्रू, गायघाट, कंकड़बाग, सिपारा, मीठापुर, इत्यादि जगहों के चक्कर काटने के बाद फिर कहूंगा – “हमारे पटना में पोटेंशियल है।” इन सभी इलाकों में कई छोटी बड़ी परियोजनाएं कार्याधीन हैं। दिक्कत अगर है तो वह है “विल पावर” की।
हमारे अंदर एक स्टीरियोटाइप है – “अरे बिहार में सब काम आराम से होता है जी, इससे जल्दी नहीं हो पाएगा।” और देखते देखते दो साल की परियोजना पांच साल, तीन साल की डिग्री पांच साल तक खिंच जाती है। एक आईएएस अधिकारी योजना की कल्पना कर सकता है, उसे लागू करवाने में एड़ी चोटी का जोर लगा सकता है। एक इंजीनियर कागज पर एक योजना उकेर सकता है। इसके साथ साथ मगर नेताओं और सिस्टम को भी इच्छा शक्ति और मजबूत करनी चाहिए। बाकी राज्यों के मुकाबले उन पर अधिक जिमेदारियां हैं लेकिन समर्पण कम है।
शॉर्ट में कहूं तो हम अधिक जिम्मेदारी से बिना रुके काम करते रहें तो आने वाले समय में बिहार एक अच्छी छलांग लगाकर अपनी स्थिति सुधार लेगा।
निश्चित रूप से कोई भी नगरी और महानगरी बुनियादी ढांचे में राज्य के अन्य हिस्सों से बेहतर होती है। अब दिल्ली और मथुरा में तुलना बिठाना तो बेमानी ही होगी। या यूं कहना कि मुंबई सिर्फ नवी मुंबई नही है, धारावी भी है, सही तो है, पर तुलनात्मक रूप से अपनी बात रखते हुए पहले को खारिज कर देना जायज नहीं होगा। पटना राज्य के बाकी हिस्सों के मुकाबले अधिक सशक्त और मजबूत अगर हुआ है तो यह सभी जिलों का संयुक्त विकास है। साथ साथ हमें यह भी देखना होगा कि बिहार का आपदा प्रबंधन भी पहले से बेहतर हुआ है।
राजधानी से बाकी जिलों की कम होती दूरी ने पटना को हर इंसान की पहुंच में ला दिया है। कुछ साल पहले तक पटना आना किसी जद्दोजहद से कम नहीं था। अब छपरा से पटना मैं सिर्फ डेढ़ घंटे में पहुंच जाता हूं, कभी यही दूरी तय करने में मुझे पांच घंटे या उससे अधिक भी लग जाते थे।
राजधानी से जिलों का नजदीक होना राजकाज और व्यापार के लिए वरदान साबित हुआ है। सारण जिला और पटना के बीच बने दीघा पहलेजा सड़क सह रेल पुल से सिवान गोपालगंज सड़क मार्ग से बेहतर जुड़ सके हैं। दूसरी तरफ उत्तर बिहार के अन्य जिले जैसे चंपारण, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय जैसे कई जिले दीघा-पहलेजा पुल की रेल ब्रिज कनेक्टिविटी का लाभ उठा रहे हैं।
बिहार झारखंड के बीच पंडुका(रोहतास) में बन रहा पुल हो; बिहार उत्तर प्रदेश को बेहतर ढंग से जोड़ने के लिए बक्सर में बना फोर लेन हो; राजधानी में सुगमता के लिए बन रहा पटना मेट्रो हो, या पटना की ओर सभी जिलों से अस्पताल भागती एम्बुलेंस की सुविधा के लिए बनवाए गए दीघा एम्स एलीवेटेड हाईवे और गंगा पथ हों, विकास में “हमारा” की भावना रखिए। हम कहने वाला बिहार मेरा तुम्हारा विकास नहीं “हमारा विकास” की कल्पना करे, तो सही होगा।
आखिर में सवाल उठता है कि विकास का पैमाना आखिर क्या होना चाहिए। बिहार के लिए विकास क्या है। मेरे हिसाब से पलायन का रुकना ही विकास माना जाना चाहिए। लेकिन उसके लिए बिहार लौटने वालों को सम्मान की नजरों से देखना जरूरी है। बिहार में रुकने वाला वर्ग अकसर निठल्ला समझ लिया जाता है। बिहार लौटने वाले लोग रोजगार सृजन करने की जिम्मेदारी उठाएं,यह अधिक जरूरी है। उनकी साधन संपन्नता और कार्य कुशलता राज्य के हित में इसी प्रकार हो सकेगी।
बिहार सरकार जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने में कमोबेश सफल है। एंट्रेप्रेन्योरशिप को भी सरकार बढ़ावा दे रही है। कई सालों की राजनीतिक स्थिरता भी इसी ओर इशारा करती है कि बिहार ठहरा नहीं है, बल्कि आगे बढ़ा है। बिहार पर भरोसा जताइए और संघर्ष करिए। खुद को अपग्रेड करिए पर रंगा सियार बनने की जरूरत नहीं है। नैचुरल बने रहिए, क्योंकि नजरिया कपड़ों से नही बदला जा सकता है। व्यक्तित्व को धार देते रहिए और काटते रहिए देश के अंदर फैली तमाम रूढ़ियों को अपने ज्ञान और तप से।
बिहार में मौके कम हैं, देश ने भी हाल में रिसेसन झेला है, जबरदस्त छंटाई का दौर भी जारी है। ऐसे में आत्ममंथन करिए। अब बिहार से जितना पाया है, उसे चुकाने का समय आ गया है। उस चचा समूह की आंख में अपनी आंखो की धधकती ज्वाला से रौशनी भरने का समय भी आ गया है।
बिहार बुद्ध और महावीर जैन की धरती है; नालंदा, विक्रमशिला जैसे अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय की धरती है; कुशल राजनीतिक मौर्य और नीति निर्माता कौटिल्य की भूमि है। बाहुबली और माफिया जैसा दीमक इतने विशाल वृक्ष को हमारी नज़रों के सामने ढाह दे, यह इक्कीसवीं सदी के बिहार को किसी भी हालत में मंजूर नहीं है।