हमारे देश की कला और संस्कृति की चर्चा तो विश्व के हर कोने में होती है , सांस्कृतिक विचारधाराओं में रंगा हमारा देश अपने आप में ही मिशाल कायम करता है। इनमें से एक है अगहन के महीने में बक्सर में हर साल आयोजित होने वाला पंचकोसी परिक्रमा मेला जो अपने आप में अनूठा मेला है, जहां पांच दिनों में पांच कोस की दूरी तय कर पांच अलग स्थानों पर पड़ाव डाले जाते हैं ।
गौतम ऋषि का आश्रम पंचकोसी परिक्रमा का पहला पराव ।
यात्री पहले दिन अहिरौली से यात्रा शुरू करते हैं, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव तथा पांचवे दिन बक्सर के चरित्रवन में पहुंचते हैं. जहां लिट्टी-चोखा खाकर मेले का समापन किया जाता है. पंचकोसी मेला व पंचकोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव गौतम ऋषि का आश्रम है, जहां उनके श्राप से अहिल्या पाषाण हो गयी थी. उस स्थान का नाम अब अहिरौली है. इसे लोग भगवान हनुमान का ननिहाल भी कहते हैं. यहां जब भगवान राम पहुंचे. तो उनके चरण स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या श्राप मुक्त हुई. वैदिक मान्यता के अनुसार अहिल्या की पुत्री का नाम अंजनी था जिनके गर्भ से हनुमान का जन्म हुआ. शहर के एक किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में अहिल्या मंदिर है. जहां मेला लगता है. यहां आने वाले श्रद्धालु पकवान और जलेबी प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं ।
नारद मुनि का आश्रम है मेले का दूसरा पराव।
मेले का दूसरा पड़ाव नदांव में लगता है. जहां कभी नारद मुनी का आश्रम हुआ करता था. आज भी इस गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर विद्यमान है. यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी-चोखा बनाकर खाते हैं. ऐसी मान्यता है कि नारद आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण का स्वागत खिचड़ी -चोखा से किया गया था ।
भार्गव ऋषि का आश्रम और भर्गेश्वर महादेव का आशीर्वाद लेकर तीसरी पराव को पूरा करतें हैं श्रद्धालु।
तीसरा पड़ाव भभुअर है जहां कभी भार्गव ऋषि का आश्रम हुआ करता था. भगवान द्वारा तीर चलाकर तालाब का निर्माण किया गया था. इस स्थान का नाम अब भभुअर हो गया है. यहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर है जिसकी पूजा-अर्चना के बाद लोग चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
बड़का नुआंव गांव जिसे पंचकोसी परिक्रमा का चौथा पराव माना जाता है।
बक्सर बाजार से सटा बड़का नुआंव में उद्दालक मुनी का आश्रम हुआ करता था. यहीं पर माता अंजनी एवं हनुमान जी रहा करते थे. यहां सतुआ मुली का प्रसाद ग्रहण किया जाता है ।
पांचवे पराव में लिट्टी चोखे का प्रशाद और विश्वामित्र का आशीर्वाद।
पंचकोसी परिक्रमा के पांचवें व अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान करने के बाद महर्षि विश्वामित्र आश्रम में पहुंच कर पूजा-अर्चना करते है. इसके बाद चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते है. जहां विश्वामित्र मुनी का आश्रम हुआ करता था. मान्यता है कि महर्षि विश्वामित्र ने ताड़का का वध करने वाले राम-लक्ष्मण को यहीं पर दिव्य अस्त्र प्रदान किए थे. लिट्टी चोखा के बनावट में शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है. गाय के गोबर से बने उपले की आग से लिट्टी और चोखा को पकाया जाता है. लोग इस दिन एक दूसरे को जबरदस्ती लिट्टी चोखा खिला कर ही भजेते हैं और यात्रा की संपूर्णता का उदघोष करते हैं।
तारका वध के पश्चात् भगवान श्री राम ने पांचों ऋषियों से लिया था आशिर्वाद।
महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ बक्सर आये थे तो ताड़का वध के पश्चात इन्हीं पांच स्थलों पर गये. पांचों मुनियों से आशीर्वाद लिए और इन पांच स्थानों पर पांच तरह का भोजन ग्रहण किये।
इसके साथ साथ भगवान श्री राम ने इसी समय महर्षि गौतम की शापित पत्नी अहिल्या का अपने चरण से छूकर उद्धार किया था ,भगवान राम के इसी यात्रा के बाद पंचकोशी परिक्रमा मेला शुरू हो गई. जिसमें देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं.पंचकोशी परिक्रमा मेला बक्सर की पहचान है. इसके महत्व को लेकर ही यहां एक बहुत ही पुरानी कहावत प्रचलित है. ‘माई बिसरी…चाहे बाबू बिसरी..पंचकोशवा के लिए लिट्टी चोखा नाहीं बिसरी।