
इस पितृसत्तात्मक समाज में हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ लिंग को आधार पर वर्गीकृत किया गया है। कपड़े और रंग से लेकर ऑफिस या घर के काम से लेकर उठने, बैठने, चलने, बात करने आदि का तरीका भी लैंगिक आधार पर ही बटा हुआ है। लिहाज़ा खेल भी इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं है। क्रिकेट और फुटबॉल जैसे खेलों को लड़कों का खेल मानना और खो-खो जैसे खेल लड़कियों के लिए निर्धारित करना इसी लैंगिक असमानता की उपज है। लेकिन सदियों से पुरुष प्रधान समाज में हाशिए पर रही महिलाएं आज इस मिथक को तोड़ रहीं हैं और अपनी विशेष पहचान बना रहीं है। ऐसी महिलाओं की सफलता की कहानी दूसरी महिलाओं के लिए भी आदर्श प्रेरणादायी साबित हो रही है। कुछ ऐसी ही कहानी है दस वर्षों तक इंडियन फुटबॉल टीम की ओर से कई इंटरनेशनल मैच खेल चुकी अंशा की। वो मात्र 15 वर्ष के उम्र में ही नेशनल मैच खेल चुकीं हैं।
अंशा सिंह का जन्म बिहार के पश्चिमी चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रवण कुमार सिंह और माता का नाम श्रीमती प्रमिला देवी है। अंशा भारतीय महिला टीम की फुटबालर हैं। वह भारतीय महिला टीम में डिफेंडर के रुप में खेल चुकीं हैं। वह वर्तमान में भारतीय रेलवे महिला टीम की कप्तान हैं। और साथ हि साथ पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र भारतीय रेलवे, हाजीपुर में काम कर रही हैं। अंशा के साथ-साथ उनकी चारों बहनें भी फुटबॉलर है। पांचों बहनें राज्य और नेशनल लेवल पर खेल चुकीं हैं। लेकिन अंशा इंटरनेशनल लेवल तक खेल चुकीं हैं। उनकी प्रमुख करियर उपलब्धि 2010 दक्षिण एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना शामिल है। अंशा ने 2005 एएफसी महिला चैंपियनशिप क्वालिफिकेशन राउंड के दौरान सीनियर स्तर पर भारत के लिए छायांकन किया।
आठवीं कक्षा से फुटबॉल खेल रही अंशा ने महज 15 वर्ष की उम्र में वर्ष 2002 में अपने कैरियर का पहला नेशनल मैच असम में खेला था। इसके बाद अंशा का चयन साउथ एशियन गेम के लिए हुआ। 2004 में सबसे पहले चाइना में इंटरनेशनल मैच खेला। अंशा 2004 से 2013 तक लगातार इंटरनेशनल स्तर पर फुटबॉल खेल चुकी है। इतना ही नहीं वह बिहार की महिला फुटबॉल की पहली महिला गोल्ड मेडलिस्ट है। अंशा भारतीय रेल की पहली महिला फुटबाल कैप्टन है।
चारों बहनें भारतीय रेल में देश की पहली महिला फुटबॉल टीम की खिलाड़ी हैं। भारतीय रेल में पहली बार पूरे देश में पूर्व मध्य रेल जोन हाजीपुर में महिला फुटबॉल टीम का गठन हुआ। अपने उत्कृष्ट खेल की बदौलत अंशा टीम की कैप्टन बनीं। चारों बहनें रेलवे की ओर से देश के विभिन्न राज्यों में होने वाले मैच में हिस्सा लेती है। अंशा अभी यहां लगभग दो दर्जन बच्चियों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रही हैं।