
घनश्याम शुक्ल के जन्म (5 नवंबर, 1949) को हुआ था वह सिवान जिला के पंजवार गाँव के निवासी थे। आज उनकी पुण्यतिथि है। गांधीवादी घनश्याम शुक्ल जी मध्य विद्यालय में शिक्षक थे। उन्होंने सिवान के डीएवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उन्होंने जेपी और प्रभावती जी के नाम पर कॉलेज की स्थापना की। वह कॉलेज जितना व्यवस्थित और पारदर्शी ढंग से संचालित होता है, इसके अलावा लड़कियों के लिए कस्तूरबा गांधी के नाम पर एक हाई स्कूल की भी स्थापना उन्होंने की है। वह अब इंटर तक हो चुका है।
आपको बता दे ताज्जुब होने वाली यह बात है कि उस ग्रामीण इलाके में उन्होंने लड़कियों के लिए महिला बॉक्सर मेरीकॉम के नाम पर हॉकी और एथलेटिक्स के लिए स्पोर्ट्स स्कूल भी शुरू किया था। अच्छी बात तो यह है की वह स्कूल पूरी तरह स्थापित हो चुका है। स्कूल की दो-तीन लड़कियाँ राज्यस्तरीय हॉकी टीम के लिए चुनी भी गयी हैं। जिला स्तरीय एक पुस्तकालय भी विद्या भवन के नाम पर चल रहा है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां के नाम पर संगीत महाविद्यालय भी उनकी पहल से चलाया जा रहा है।
आपको बता दे घनश्याम शुक्ल छात्र जीवन से ही राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में सक्रिय थे। वह किशन पटनायक के नेतृत्व वाले लोहिया विचार मंच, सोशलिस्ट पार्टी के योजन सभा, समाजवादी जन परिषद, जनता पार्टी और समता संगठन से जुड़े रहे। जेपी के साथ आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी शामिल हुए।
भीख मांगकर खोला गांव का पहला स्कूल
1982 में जन सहयोग से पंजवार में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था। हालांकि इस स्कूल के खुलने के बाद, गांव में एक और स्कूल खुला था। घनश्याम शुक्ला के बड़े बेटे चंद्रभूषण शुक्ला बताते हैं कि तब लोग पिता जी से कहा करते थे कि आपके स्कूल का सरकारीकरण नहीं होगा क्योंकि आपके पैसा नहीं है। इस पर पिताजी जवाब दिया करते थे कि ठीक है हमारे पास पैसा नहीं है। लेकिन हमारे पास कटोरा है, भिक्षा का कटोरा। इसका कोई लिमिटेशन नहीं है। उनके पास जितना भी धन हो, उसका एक लिमिट होगा। लेकिन भिखारी का कोई लिमिट नहीं है। अनलिमिटेड है।‘ आपको बता दे की उन्होंने 2008 में गांधी जयंती के मौके पर ‘प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज’ की स्थापना की थी। प्रभा प्रकाश डिग्री कॉलेज के लिए धनशाय शुक्ल को बड़े कोशिश करने पड़े थे उनकी जिंदगी भर की कमाई कम पड़ने लगी, तो वे चंदा के लिए दिल्ली तक भी आ गए। शुक्ल के स्कूलमेट बी.एन. जादव बताते हैं कि दोनों को 5-5 रुपये के दिल्ली में 10-10 रुपये के लिए बहुत दूर-दूर तक पैदल चलना पड़ा था। शुक्ल कहा करते थे कि, ‘’लेने वाले का हाथ हमेशा नीचे होता है और देने वाले का ऊपर। अगर कोई पांच रुपये भी दे दिया तो हम उसे धन कहते हैं और 500 भी दे दिया तो धन्यवाद कहते हैं।‘’
शुक्ल के निधन से निराश मैरी कॉम खेल एकेडमी की एक नन्ही खिलाड़ी कहती है, ‘’ बहुत दुख है कि सर अब नहीं रहे। पहले हम लोग आते थे, तो गुरुजी हम लोगों के साथ एक गार्जियन की तरह रहते थे। हम लोगों को मोटिवेट करते थे। हम पेपर नहीं पढ़ते, तो बोलते थे कि तुम लोग पेपर पढ़ा करो। महान -महान हस्तियों की जीवनी बताया करते थे। साथ ही किताब पढ़ने की सलाह भी दिया करते थे।‘’महिलाओं के सुधार और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना जीवन खपा देने वाले घनश्याम शुक्ल को अपने क्षेत्र का प्रखर नारीवादी माना जाता है। लड़कियां उनके सामने अपनी बात बड़ी मुखरता से रखती थीं ।