HomeArtभिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि पर लोक संस्कृति का समागम Shubham kumar Art, Bihar, Event भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि के अवसर पर बुधवार को पटना के बिहार संग्रहालय में ‘बिहारनामा’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भोजपुरी नाट्य कला एवं साहित्य में भिखारी ठाकुर के योगदान पर चर्चा करना इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य था। भिखारी ठाकुर (१८ दिसम्बर १८८७ – १० जुलाई सन १९७१) भोजपुरी भाषा के उत्कृष्ट लोक कलाकार, रंगकर्मी लोक जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के कला के जादूगर माने जाते हैं । वे बहु आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे एवं अपने भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। कार्यक्रम में ठाकुर के जीवन के कई अन्य पहलुओं पर वार्ता हुई और उनके भोजपुरी के उत्थान में उनके निःस्वार्थ एवं समर्पण पूर्ण योगदान को सब ने सराहा।ठाकुर को भोजपुरी भाषा और संस्कृति का बड़ा झंडा वाहक माना जाता है। भोजपुरी को झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बंगाल के कुछ हिस्सों सहित बिहार के प्रमुख हिस्सों में व्यापक रूप से बोली जाती है। Share Pin कार्यक्रम को कुल तीन अध्यायों में बाँटा गया जिसमें ‘बतकही’, ‘व्याख्यान’, ‘गायन’ का आयोजन क्रमशः किया गया।जैसा नाम से प्रतीत हो रहा, बतकही में उद्घोषक ने विशिष्ठ अतिथियों से बातचीत की जिसका शीर्षक था ‘भिखारी ठाकुर के रचनाओं में स्त्रियों का पक्ष एवं स्वर’।अतिथियों में ऋषिकेश सुलभ और तैय्यब हुसैन शामिल थे। ऋषिकेश जी एक विख्यात रंगकर्मी, कहानीकार हैं एवं उन्होंने भिखारी ठाकुर के जीवन पर आधारित एक नाटक भी लिखा है जिसका शीर्षक ‘बटोही’ है। वहीं हुसैन साहब अपने शोध के लिए प्रसिद्ध है जो उन्होंने ठाकुर जी पर किया है। वह भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व –कृतियों के विविध पक्षों के जानकार एवं लेखक हैं।जब उद्घोषक ने हुसैन साहब से यह सवाल किया कि शोध से पहले वे भिखारी ठाकुर के विषय में क्या धरना रखते थे, उनका जवाब बेहद सरल रहा। उन्होंने कहा, “लोग आज भी उन्हें अलग अलग रूप में देखते हैं, कोई उनकी तुलना महान विद्यापति से करता है तो कोई उन्हें भोजपुरी नचऽनिया कह देता है। भोजपुरी में उनके योगदान को विश्व भूल नहीं सकती”इस क्रम में ठाकुर के दो महत्वपूर्ण रचनाओं,बिदेसिया और गबर घिचोर को याद किया गया। Share Pin Share Pin आयोजन के दूसरे अंश ‘व्याख्यान’ में डॉ. प्रवीण झा ने बिहार के संगीत परम्परा एवं भारतीय संगीत में उसके योगदान पर अपनी बातें रखीं। डॉ. झा पेशे से चिकित्सक हैं पर बिहार एवं भारत के लोक और शास्त्रीय संगीत के विशिष्ट जानकार हैं। उन्होंने अपने भाषण में बताया कि कहीं न कहीं राग ध्रुपद, ख़याली एवं ठुमरी की उत्पत्ति बिहार से हीं हुई है। इसी कड़ी में वे यह भी कहते हैं कि कथक नृत्य का भी जन्म बिहार में ही हुआ। उन्होंने बताया कि कथक ‘कथा’ शब्द से बना है और उन्हें यह पता चला है कि बिहार के कुछ गावों में आज भी खुदाई के दौरान मिट्टी एवं अन्य धातुओं के पैर घुँघरू मिलते हैं। डॉ. ने यह स्पष्ट किया कि लोक संगीत पहले आया और शास्त्रीय संगीत बाद में। Share Pin कार्यक्रम का अंत लोक गीत गायक चंदन तिवारी के गायन के साथ हुआ। उन्होंने शुरुआत भिखारी ठाकुर की रचना “चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे“, “छौ गज के साड़ी पेन्हलू” से किया जिसे सुन कर भावन में बैठे सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और भावन तालियों से गूंज पड़ा। इसके पश्च्यात चंदन ने रसूल मियाँ के गाने “छोड़ दऽ गोरके के करलऽ खुसामि बलमा… एकर किया ले करबऽ गुलामी बलमा” को। इस लोक गीत में एक स्त्री अपने पति को अंग्रेजों की गुलामी न करने को कह रही है और उस दौर के स्याह सच को प्रत्यक्ष कर रही है। इसके बाद स्नेह लता द्वारा रचित एक गीत गाया गया जो दहेज कुप्रथा पर आधारित था। Share Pin कार्यक्रम पूर्णत: भिखारी ठाकुर पर समर्पित रहा, साथ ही साथ बिहार के लोक गीतों, लोक कला विवरण बहुत ही सराहनीय था। बिहार में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन हमारी लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए बेहतर पहल है। Also Read- तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो | एक कविता बिहार से Share Pin Share Pin Do you like the article? Or have an interesting story to share? Please write to us at [email protected], or connect with us on Facebook, Instagram and Twitter and subscribe us on Youtube. Quote of the day-"The most important thing is to enjoy your life - to be happy -it's all that matters." -Audrey Hepburn Share Tweet Share Pin Comments comments